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परिच्छेद दो
कुवलयमालाकहा का साहित्यिक स्वरूप
कथा के भेद-प्रभेद
उद्योतनसूरि ने ग्रन्थ के प्रारम्भ में कथाभेद की गणना करते हुए कुवलयमाला को संकीर्णकथा कहा है । कथा के पाँच भेद हैं-सकलकथा, खंडकथा, उल्लापकथा, परिहासकथा एवं संकीर्णकथा ।' जिसके अन्त में समस्त फलोंअभीष्ट वस्तु की प्राप्ति हो जाय, ऐसी घटना का वर्णन सकलकथा में होता है । " खंडकथा की कथावस्तु बहुत छोटी होती है, जैसे इन्दुमतीकथा । प्राकृत कथा साहित्य की यह वह विधा है, जिसमें मध्यस्थान में मार्मिकता रहती है । उल्लापकथा एक प्रकार की साहसिक कथा है, जिसमें समुद्रयात्रा या साहसपूर्वक किये गये प्रेम का निरूपण रहता है । परिहासकथा हास्य व्यंगात्मककथा है । इसमें . कथा के अन्य तत्त्व कम पाये जाते हैं ।
संकीर्ण कथा - संकीर्ण कथा या मिश्रकथा की प्रशंसा सभी प्राकृत कथाकारों की है । उद्योतनसूरि ने इसके स्वरूप के सम्बन्ध में न केवल प्रकाश डाला है, अपितु कुवलयमालाकहा को सङ्कीर्णकथा में लिखकर उसका उदाहरण भी प्रस्तुत किया है । दशवेकालिक नियुक्ति में सङ्कीर्णकथा को मिश्रकथा कहा गया है । जिस कथा में धर्म और काम इन तीन पुरुषार्थों का निरूपण किया जाता है। वह मिश्रकथा कहलाती है । 3 आचार्य हरिभद्र ने इस परिभाषा को मानते हुए
१. ताओ पुण पंच कहाओ । तं जहा । सयलकहा, खंडकहा, उल्लावकहा, परिहास - कहा तह - संकिण - कह त्ति णायव्वा – कुव० ४.५
२. समस्तफलान्तेति वृत्तवर्णना समरादित्यादिवत् सकलकथा,
३.
काव्यानुशासन हेमचन्द्र, अ०५, सूत्र ९-१०, पृ० ४६५ धम्म अत्थ कामो उवइस्सइ जन्त सुत्त कव्वेसुं
लोगे वेए समये सा उ कहा
मीसिया णाम ॥
दशवैकालिकनिर्युक्ति गा० २०६, पृ० २२७