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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन डालती है। इस प्रसंग का स्व० डा. वासुदेवशरण अग्रवाल ने इस प्रकार अनुवाद किया है :
There is a reference to gold of highest purity (jaçça-suvanpa-jatya --suvarṇa, 2.2). Whatever impurity or dross was contained in the gold brought to the goldsmith was removed by the latter by subjecting it to different processes of testing it on the touch-stone (Kasa); cutting (cheda), heating under regulated fire (tava), beating out into flat sheets (tadana), filing the sheets and the same process of beating it into a different shape, giving it a shape of round bar and dividing into several parts for final testing (vihadana). The purest gold (jaççasuvanpa) was styled as dohdahi in Persian.
-Kuv. Int. P. 113. जात्यस्वर्ण परशियन की दोहदही प्रक्रिया के अनुरूप है। भारत में इसे बारहवाणी कहा जाता था । ठक्कुरफेरू ने द्रव्यपरीक्षा में १२ डिग्री तक विशुद्ध सोने को प्रमाणित स्वर्ण कहा है (भित्तिकनक)। पूर्व-मुस्लिम काल में विशुद्धसोना १६ डिग्री का माना जाता था, जिसे षोडसवर्णनक कहा जाता था। इसे उद्योतनसूरि द्वारा उल्लिखित 'जच्चसुवण्ण' कहा जा सकता है। मानसोल्लास में भी षोडसवर्ण का उल्लेख है, जिसे हिन्दी में सोलहवानी तथा राजस्थानी में सोलमो सोनो कहा जाता है तथा ज्ञानेश्वरी में इसे सोलेन कहा गया है। (अनु० ८५) । कादम्बरी में जिस शृंगीकनक का उल्लेख है, सम्भवतः वह उद्द्योतन का 'जच्चसुवण्ण' ही है ।
स्वर्णसिद्धि-कुव० में स्वर्ण तैयार करने की एक और प्रक्रिया का वर्णन है। लोभदेव नामक व्यापारी की कथा के प्रसंग में स्वर्ण बनानेवाले समुद्रचारी अग्नियक नामक महाविट का उल्लेख हुआ है ।" लोभदेव जैसे ही तारद्वीप के किनारे लगा उसे काले वर्णवाले, रक्तपिंगल आँखों वाले, सिर पर जटाजट धारण किये हुए यमदूत सदृश कुछ पुरुषों ने पकड़ लिया। पकड़ कर उसे अपने स्वामी के पास लाये। पहले लोभदेव को खूब खिलाया-पिलाया गया। एकाएक फिर उसे वाँध दिया गया (उद्धाविएहिं बद्धो)। फिर बहुत से लोग उसके मांस को काटने लगे (६६२३)। माँस छीलकर उसका रुधिर भी एकत्र किया गया (छिण्णं मंसं, पडिच्छियं रुहिरं)। लोभदेव जव वेदना से चिल्लाने लगा तो किसी औषधि विशेष का उस पर विलेप किया गया, जिससे वेदना शान्त हो
१. कल्चरल नोट, इण्ट्रोडक्शन, कुव०, पृ० ११३. २. द्रव्यपरीक्षा- ठक्कुरफेरू, पृ० १७, जोधपुर १९६१. ३. काव्यमीमांसा-राजशेखर, अ० १७. ४. द्रष्टव्य- 'द हाइएस्ट प्युरिटी आफ गोल्ड इन इण्डिया'-- डा० अग्रवाल,
द जर्नल आफ द न्युमेसमेटिक सोसायटी इन इण्डिया, भाग १६,
पृ० २७०.७४. ५. अत्थि समुद्दोयरचारी अग्गियओ णाम महाविडो, ६९.२६.