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________________ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन इससे सार्थवाह को जो सार्थ का रक्षक कहा गया है, वह स्पष्ट हो जाता है। इस प्रसंग में कंठाल (कंडाल रावटी में रखे जानेवाले), पलान, पटकुटो (कनात) एवं दंड (बांस) ऐसे विशिष्ट शब्द हैं जिनका सार्थ के पड़ाव एवं प्रस्थान के समय ६ठी से १०वीं सदी तक बराबर प्रयोग होता रहा है। वाण ने हर्षचरित में ऊँट पर लादे जानेवाले कंडालों का वर्णन किया है। (दे० डा० अग्रवाल, हर्षचरित, पृ० १४२) । तिलकमंजरो में भी इसका उल्लेख है (पृ० १२२.२३) । स्थल-मार्ग की कठिनाइयाँ प्राचीन भारत में स्थल-मार्ग में सार्थ द्वारा यात्रा करना भी निरापद नहीं था।' सार्थवाह की सजगता एवं सुरक्षा के वावजूद रास्ते की जंगली जातियाँ एवं चोरों का भय बना रहता था। दक्षिणापथ के यात्रियों के लिए विन्ध्याटवी से पार होना सबसे अधिक कठिन था। वहाँ को भिल्ल जातियों के आक्रमण एवं जंगली इलाका होने से यात्रियों को हमेशा भय बना रहता था। समराइच्चकहा एवं कुवलयमाला में शवर-याक्रमणों का वर्णन है। उदद्योतन ने वैश्रमणदत्त सार्थवाह के सार्थ पर शवरों के आक्रमण का सूक्ष्म वर्णन किया है। शबरों ने जव यात्रियों को मार-डपटकर उनको बहुमूल्य चीजें छीन ली तथा सार्थ तितर-बितर होने से सार्थवाह को लड़को कुवलय चन्द्र की शरण में आ गयी तो कुवलयचन्द्र भी शबर सेनापति से युद्ध करने लगा। अन्त में जब दोनों एक दूसरे से पराजित न हुए तो शवर सेनापति ने कुमार से संधि कर ली। बाद में जब परिचय हुआ तो सेनापति ने सार्थ का सव धन वापस कर दिया (१३८.६,९) । प्राचीन भारतीय स्थलमार्ग आठवीं शदी में प्राचीन भारतीय स्थलमार्गों का काफी विकास हुआ। अन्तर्देशीय व्यापार की समृद्धि से यह ज्ञात होता है कि देश के विभिन्न व्यापारिक केन्द्र स्थलमार्गों द्वारा एक-दूसरे से जुड़े थे। उत्तरापथ एवं दक्षिणापथ प्रमुख मार्ग थे। इनमें से होकर अन्यान्य नगरों को भी रास्ते फूटते थे, जिनका व्यापारिक एवं अन्य यात्राओं के लिए प्रयोग होता था। कुव० की सम्पूर्ण कथा को ध्यान में रखते हुए घटनाक्रम से निम्नोक्त प्रमुख स्थलमार्गों का पता चलता है : १. अयोध्या से कोशाम्बी, विन्ध्याटवि, नर्मदानदी, सह्यपर्वत, चिन्ता मणिपल्लि और काँची होते हुए विजयपुरी। २. कांची से (रगड़ा संन्निवेश) कोशाम्बी (चंडसोम की कथा, ४५-४८) । .. ३. उज्जयिनी से नर्मदानदी, नर्मदा से मथुरा एवं मथुरा से कोशाम्बी (प्रयाग) (मानभट की कथा, ५०-५५) । . The volume of Trade in our period seems to have gone down as a result of the insecurity of highways. The absence of a strong central power led to the growth of feudal anarchy and the increase in the power of unsocial elements.-Lallanji Gopal,-The Economic life of Northern India P. 101.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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