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समुद्र-यात्राएं
२११ इस सामान्य घटना का धार्मिक रूपान्तर सम्भवतः उद्योतनसूरि ने पहली बार किया है। उनके अनुसार समुद्र जैसा यह संसार है। जहाज-भग्न होना कर्मों के भार से संसार-समुद्र को पार करने की असमर्थता है। फलक द्वारा किसी द्वीप पर लगना अपने संचित कर्मों द्वारा अगला जन्म-ग्रहण करना है। जहाँ ये तीनों यात्री मिलते हैं, वह कुडंगद्वीप मनुष्य लोक है, जहाँ अनेक दुःख हैं। तीनों यात्री जीवों के तीन प्रकार हैं, जो ८४ योनियों में फिरते हैं। कुडंगद्वीप में जो कादम्बरी के वृक्ष हैं, वे महिलाएँ हैं तथा उनमें जो फल आते हैं, वे सन्तान के प्रतीक हैं, जिनकी मनुष्य अज्ञानी बन कर रक्षा करता है। जो निर्यामक पुरुष उन्हें लेने गये थे, वे धर्माचार्य हैं तथा वह नौका दीक्षा का प्रतीक है। उस नौका पर बैठ कर जहाज द्वारा तीर पर पहुँच जाना मोक्ष है।' प्रसिद्ध जल-मार्ग
कुव० में समुद्रयात्रा के वर्णन के प्रसंगों में निम्नोक्त जलमार्गों की सूचना मिलती है :
१. सोप्पारक से चीन, महाचीन जानेवाला मार्ग (६६.२) २. सोपारक से महिलाराज्य (तिब्बत) जानेवाला मार्ग (६६.३) ३. सोपारक से रत्नद्वीप (६६.४) ४. रत्नद्वीप से तारद्वीप (३९.१८) ५. तारद्वीप से समुद्रतट (७०.१२, १८) ६. कोशल से लंकापुरी (७४.११) ७. पाटलिपुत्र से रत्नद्वीप के रास्ते में कुडंगद्वीप (८८.२९, ३०) ८. सुवर्णद्वीप से लौटने के रास्ते में कुडंगद्वीप (८६.४) ९. लंकापुरी को जाते हुए रास्ते में कुडंगद्वीप (८६.६) १०. जयश्रो नगरी से यवनद्वीप (१०६.२) ११. यवनद्वीप से पांच दिन-रात का रास्ता वाला चन्द्रद्वोप का मार्ग
(१०६.१६) १२. समुद्रतट से रोहणद्वीप (१९१.१३, १६) १३. सोपारक से बब्बरकुल (६५.३३) १४. सोपारक से स्वर्णद्वीप (६६.१)२
१. जो एस महाजलही संसारं ताव तं वियाणाहि ।
जो दोणी सा दिक्खा जं तीरं होइ तं मोक्खं ॥-८९.९०.१, २. २. द्रष्टव्य-गो०-इ० ला० इ०, पृ० १३८.