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परिच्छेद तीन समुद्र-यात्राएँ
कुवलयमाला में वर्णित वाणिज्य एवं व्यापार के सन्दर्भो से यह सहज अनुमान किया जा सकता है कि इतना विस्तृत व्यापार जलमार्ग एवं स्थलमार्ग की सुविधाओं के बिना सम्भव नहीं था। उद्द्योतन ने स्वयं जलमार्ग एवं स्थलमार्ग-सम्बन्धी अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ दी हैं, जिनके अध्ययन से ८ वीं सदी की पथ-पद्धति पर नया प्रकाश पड़ता है।
जल-यात्राएँ
___ गुप्तयुग के समाज में लोगों की यह आम धारणा हो गयी थी कि समुद्रयात्रा के द्वारा अधिक धन अर्जित किया जा सकता है। मृच्छकटिक में विदूषक की इस भावना -- भवति ! कि युष्माकं यानपात्राणि वहन्ति ? (४ ३०)-का तथा बाण के इस कथन-'अभ्रमणेन श्रीसमाकर्षणं'-(हर्षचरित, ६ प० १८९) का उद्द्योतन ने धनोपार्जन के साधनों में सागर-सन्तरण को प्रमुख स्थान देकर समर्थन किया है।' तत्कालीन साहित्य में उल्लिखित समुद्र-यात्राओं के वर्णनों से यह स्पष्ट हो गया है कि ८-९ वीं सदी में भारतीय व्यापारी लम्बी समुद्रयात्राएँ करने लगे थे, जिसका भारत की आर्थिक समृद्धि पर अच्छा प्रभाव पड़ा। विदेशों की सम्पत्ति से भारत माला-माल हो गया । समुद्रयात्रा का उद्देश्य
कुव० में समुद्र-गात्रा के चार प्रसंग वर्णित हैं। सार्थवाहपुत्र धनदेव, तीन भटके हुए यात्री, सागरदत्त एवं दो वणिक्-पुत्रों की कथाऐं समुद्रयात्रा-विषयक
१. सायर-तरणं-अत्थस्स साहयाई । कुव० ५७.२५. २. प्रो० के० डी० वाजपेयी, भारतीय व्यापार का इतिहास ।