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वाणिज्य एवं व्यापार
१८७ फलों के ढेर लगे थे।' उसके आगे मोती, स्वर्णरत्न आदि अलंकारों की दुकानें थीं।२ पास ही काले, पीले, श्वेत रंग के नेत्रयुगल वस्त्र के थान दुकान में फैले थे। दूसरी गली में विभिन्न प्रकार के वस्त्रों से दुकानें भरी थीं। उसके आगे किसी गली में सरस औषधियों की दुकानें थीं। दूसरी वोथि में शंख, वलय, कांच, मणि आदि की सुगन्ध से दुकानें व्याप्त थीं। आगे की दुकानों में बाण, धनुष, तलवार, चक्र, भाला के ढेर लगे थे। अगली वीथि में शंख, चामर, घंटा एवं सिन्दूर आदि की दुकानें थीं।' अगली दुकानों में विविध प्रकार की जड़ी-बूटी तथा अनेक प्रकार से चंदन रखे हुए थे ।' आगे की गली की दुकानें पेय एवं खाद्य पदार्थों की थीं, जिनसे घृत टपक रहा था । आगे की दुकानों में हल्दी को धूल उड़ रही थी।'' अन्त की दुकानों में अच्छी सुरा एवं मधुर मांस बिक रहा था ।''
विपणिमार्ग के इस विस्तृत विवरण से स्पष्ट है कि स्थानीय बाजारों में जरूरत की प्रायः सभी वस्तुओं की दुकानें होती थीं। उद्द्योतन का यह कथन'जो कुछ भी पृथ्वी पर सुना जाता है, देखा जाता है एवं हृदय में सोचा जाता है वह सब वहाँ बाजारों में उपलब्ध था', जो विपणिमार्ग को समृद्धि का द्योतक है। प्रसाधन-सामग्री के स्टोर, फलों की दुकानें, सराफा-बाजार, बजाजी, शस्त्रभण्डार, मेडिकल स्टोर, जलपानगृह, मदिरालय, खटीकखाना आदि तत्कालीन बाजारों के प्रमुख विक्रय केन्द्र थे ।१४
उद्योतन ने अन्य प्रसंगों में भी विपणिमार्गों का वर्णन किया है, जिससे यह ज्ञात होता है कि तत्कालीन विपणिमार्ग अनेक दिशाओं के देशो वनियों द्वारा
१. एला-लवंग-कक्कोलय-रासि गम्भिणाओ। २. मुत्ताहल सुवण्ण-रयणुज्जलाओ। ३. वित्थारियायंब-कसण-धवल-दीहर-णेत्त-जुयलाओ ।
बहु-विह-पर-वसण-भरियाओ। ५. संणिहिय-विडाओ कच्छउड-णिक्खित्त-सरस-णहवयाओ य। -८.१.
संख-वलय-काय-मणिय-सोहाओ। --८.१. ७. सर-सरासणब्भसं चक्क-संकुलाओ मंडलग्ग-णिचियाओ । -८.२. ८. संख-चामर-घंटा सोहाओ ससेंदूराओ य । ९. संणिहिय-विविह-ओसहीओ-बहु-चंदणाओ य । १०. सिणेह-णिरंतराओ बहु-खज्ज-पेज्ज-मणोहराओ। ११. उद्दाम-हलिद्दी-रय-पिंजराओ। १२. ससुराओ संणिहिय-महुमासाओ त्ति । -८.५. १३. जं पुहईए सुणिज्जइ दीसइ जं चितियं च हियएण ।
तं सव्वं चिय लब्भइ मग्गिज्जतं विवणि-मग्गे ॥८.७. १४. कथाकोशप्रकरण, जिनेश्वर, पृ० ८५, १६५.