________________
राजनैतिक जीवन
१७५
बुलाने हेतु दो व्यक्तियों को जाना चाहिए - वच्चह दुवे वि वच्चइ, एक्को दुनो
जाइ वेज्ज घरे (२३६.१७) । वैद्य विभिन्न औषधियों की जड़ें दवाइयों के लिए प्रयोग में लाते थे । अतः मूल (जड़) के प्रयोग के कारण वैद्यों को भी मूलक स्त्री वैद्यों को मूलिका कहा जाता था । कुमार महेन्द्र कुवलयचन्द्र से कहता है कि तुम्हारी कामज्वर-व्याधि को वैद्या कुवलयमाला ही दूर सकती है- -मयण महाजर विणा - हरी मूलिया कुवलयमाला (१६६.३०) ।
मृतक व्यक्ति की पहचान के लिए आँखों की पुतलियाँ देखी जाती थी, उसके हृदय पर हाथ रख कर नाड़ी की गति देखी जाती थी तथा मुख पर हाथ रख कर स्वांस का अनुभव किया जाता था । शरीर के सभी मर्मस्थानों में मालिश की जाती थी और शरीर की उष्णता व शीतलता की पहचान की जाती थी । शीतल शरीर का अनुभव होते ही रोगी को मृत समझ लिया जाता था ( २३८२७-३०)।
इस प्रकार रोग एवं उनकी परिचर्या के उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होता है कि उद्योतनसूरि के समय में विभिन्न रोगों के उपचार की शास्त्रीय व्यवस्था थी तथा कुछ उपचार देशी दवाओं एवं लौकिक प्रयोगों द्वारा भी होते थे ।
उद्योतनसूरि ने इस प्रकार अपने ग्रन्थ में तत्कालीन समाज के विभिन्न चित्र उपस्थित किये हैं । आर्य, अनार्य जातियों, पारवारिक जीवन, सामाजिकसंस्थाओं एवं आयोजनों तथा वस्त्र, अलंकार एवं प्रसाधन की विभिन्न सामग्रियों के सम्बन्ध में उन्होंने जो भी जानकारी दी है, वह उस युग की संस्कृति एवं सभ्यता की द्योतक है । न केवल नगर सभ्यता एवं राजनैतिक जीवन का अपितु ग्रामीण जीवन के चित्र भी कुवलयमाला में अंकित है । इन सबसे यह स्पष्ट है कि उद्योतनसूरि यथार्थ समाज के सूक्ष्म द्रष्टा थे तथा समाज की यह सब समृद्धि तत्कालीन आर्थिक- जीवन एवं वाणिज्य व्यापार की उन्नति पर निर्भर थी ।