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________________ सामाजिक आयोजन १३७ गांवों के निवास स्थान प्रायः मिट्टी के बने होते थे (१४७.२८)। और उन पर छप्पर ताना जाता था। वर्षाऋतु के आते ही गांवों में घरों के छप्पर तैयार किये जाने लगते थे-गामेसु घराई छज्जति (१०१.२०) । कुछ झोंपड़ियाँ जूना और बांस की दीवालों से भी बनायी जाती थीं।' समृद्ध ग्रामों में पक्के मकान भी बनते थे । गावों में तालाब बनाये जाते थे, जो ग्रामवासियों के द्वारा नहाने आदि से कीचड़ भरे रहते थे (४२.३४) ।। ___ गांवों का प्रमुख धन्धा कृषि था। वर्षाऋतु के आते ही हल जोतना प्रारम्भ कर दिया जाता था (३९.३०, ४६.११)। अच्छी कृषि के लिए वर्षा का होना आवश्यक था। यदि अनावृष्टि हो जाती तो अकाल पड़ जाता था। उद्योतनसूरि ने एक ऐसे अकाल का सूक्ष्म वर्णन किया है। माकन्दी नगरी में बारह वर्ष तक वर्षा न होने से भयंकर अकाल पड़ गया। पानी के बिना अनाज नहीं उगा, औषधियां नहीं उगी, वृक्षों में फल नहीं आये, घास नहीं उगी, पावस ऋतु में केवल लू भरी हवा चली। धूल उड़ती थी, पृथ्वी कंपती थी, पर्वत बाजते थे, उल्कापात होता था, दिशाएँ जलती थीं, ग्रीष्म ऋतु जैसा वातावरण हो गया था (११७.१२, १५) । इस प्रकार उत्पादन न होने से, पूर्व संचित खाद्यान्न समाप्त हो गया। अतः उदरपूर्ति करना कठिन हो गया। परिणामस्वरूप देव-अर्चना बन्द हो गयी, अतिथि-सत्कार घट गया, ब्राह्मणपूजा दुःखदायी हो गयी, गुरुजनों का सम्मान घट गया, सेवकों का दान आदि बन्द हो गया, लाज-शरम जाती रही, पुरुषार्थ में प्रमाद आ गया तथा कुशल व्यक्तियों का अनादर होने लगा (११७.२०,२२) । अकाल में जनपथ लंघन करने लगे, सब बातों को छोड़कर दिनरात खाने-पीने की ही चर्चा थी। भूख से अनेक श्रेष्ठियों आदि के कुल भी नष्ट हो गये। यज्ञशर्मा नामक ब्राह्मण किसी प्रकार बचा रहा । उसने दुकानों के आगे फर्श पर से अनाज के दाने बीन-बीन कर खाये तथा भीख मांगकर अपना पेट भरा एवं अकाल के समय को व्यतीत किया (११७.२९)। गांवों में इस प्रकार के अकाल से बचने के लिए खेती पर विशेष ध्यान दिया जाता था। उपजाऊ जमीन में पुष्ट बीजों के द्वारा सौगुना फसल पैदा की जा सकती थी (१९२.२७) । फसल की सिंचाई के लिए रहट का उपयोग किया जाता था--प्रारहट-घडि-समाणा (२६३.३१) तथा वर्षा के पानी को रोकने के लिए खेतों को बाँध दिया जाता था। प्राय: बैलों से खेती की जाती थी (१८६.७) तथा फसल को काटकर खलिहान में रखते थे एवं दायँ करके उसमें से अनाज निकालते थे (१८६.१२) । फसल में तिल (८.१८), समा, चावल, कोदों (१०१.७) तथा मूंग (२८६.१२) आदि अनाज पैदा किया जाता था। १. जर-कडय-कए उडय-वासे, ४३.२.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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