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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन के हाथ में कुवलयमाला का हाथ दिया। कुमार ने जैसे ही कुमारी का हाथ पकड़ा, तूर बज उठे, शंख फंके जाने लगे, झल्लरी बजायी गयीं, पंडित पढ़ने लग गये, ब्राह्मण मन्त्र पढ़ते हुए आहूति देने लगे और फेरे प्रारम्भ हो गये, चौथा फेरा पूरा होते-होते ही जय-जय के शब्दों से मंडप गूंज उठा (१७१.१, १५) महिलाएँ गीत गानें लगीं।
कुव० का उपर्युक्त विवाहोत्सव का वर्णन अनूठा है। समराइच्चकहा में सिंहकुमार और कुसुमावली का विवाह-वर्णन इसी प्रकार का है। उसमें भी चार फेरे ही उल्लिखित हैं। भारत के कई प्रान्तों में यद्यपि सात फेरे शादी में लिये जाते हैं, किन्तु राजस्थान में अभी भी पुष्करणा ब्राह्मणों में चार फेरों से विवाह सम्पन्न होते हैं। विवाहोत्सव में गीत गाना अनिवार्य कार्य था, क्योंकि ऐसे अवसरों पर गान महज मनोविनोद या आमोद उल्लास के साधन नहीं होते थे, अपितु विश्वास किया जाता था कि वे देवताओं को प्रसन्न करेंगे, अमंगलों को दूर करेंगे और वर-वधू को अशेष सौभाग्य से अलंकृत करेंगे।' युवराज्याभिषेकोत्सव
युवराज को राजा बनाने के लिए राजा द्वारा उसका अभिषेक करने की परम्परा अनेक ग्रन्थों में मिलती है। किन्तु युवराज के क्या अधिकार एवं कर्तव्य हैं इसका प्रामाणिक वर्णन कहीं उपलब्ध नहीं हुआ। राजा अपने पुत्र के लिए अपार धन उत्तराधिकार में छोड़ता था और राज्य तथा समाज के बड़े व्यक्तियों के समक्ष युवराज को राजा बनाया जाता था। धीरे-धीरे यह कार्य एक उत्सव के रूप में होने लगा और नगर में सजावट तथा अनेक प्रकार के मांगलिक कार्य इसके साथ जुड़ गये। उद्योतनसूरि ने उत्सव के रूप में ही राज्याभिषेक का वर्णन किया है । कुवलयचन्द्र के राज्याभिषेक के समय अयोध्यानगरी को सजाया गया। पूर्णरूप से सज जाने पर नगरी ऐसी प्रतीत होती थी मानों कोई कुलवधू सजधजकर अपने प्रियतम के आगमन की प्रतीक्षा कर रही हो (१९९.३३) । नगरी के सज जाने पर दृढ़वर्मन् कुमार को अपने साथ हाथी पर चढ़ाकर नगरदर्शन के लिए निकल पड़ा। नगरवासियों ने कुमार का स्वागत किया (२८०.१,६) ।
नगरदर्शन के बाद कुमार कुवलय चन्द्र ने आस्थानमण्डप में प्रवेश किया तथा विविध पंचरंगी मणियों से निर्मित मेघधनुष की शोभा से युक्त सिंहासन पर वह बैठा । जय-जय शब्दों के साथ महाराज एवं सामन्तों ने मणियों से चित्रित, गीले कमल एवं कोमल हरे पत्तों से ढके हुए कंचण-मणि निर्मित कलशों को हाथों पर उठाकर मांगलिक शब्दों के साथ कुमार का अभिषेक किया। तब राजा एवं वृद्ध सामन्तों ने कुमार को आशीर्वाद दिया और सामने आसनों पर बैठ गये (२००.८, १२)।
१. प्राचीनभारत के कलात्मक विनोद, पृ० ११४. २. श०-रा० ए०, पृ० ३१४ द्रष्टव्य ।