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( १५ ) साहस, जलयात्रा की तैयारियाँ-निर्यात की वस्तुओं का संग्रह, यात्राकाल की अवधि आदि पर विचार, दलालों का सहयोग आदि। जहाज का प्रस्थान, समुद्र पार के देश में व्यापार, 'दिण्णाहत्थसण्णा' का विशेष उल्लेख, स्वार्थी-व्यापारी, समुद्री-तूफान, पंजर-पुरुष, इष्ट देवताओं का स्मरण । जहाज भग्न होने पर व्यवस्था-भिन्नपोत-ध्वज। उद्योतन द्वारा जहाज-भग्न का धार्मिक रूपक । प्रसिद्ध जलमार्ग । प्रमुख
बन्दरगाह--सोपारक । परिच्छेद ४. स्थल-यात्राएँ ( २१२-२१७)
सार्थवाह, सार्थ का प्रस्थान, सार्थ का साज-सामान, सार्थ का पड़ाव एवं प्रस्थान, स्थलमार्ग की कठिनाइयाँ, प्राचीन भारतीय स्थलमार्ग
उत्तरापथ से दक्षिण भारत की यात्राएँ। परिच्छेद ५. धातुवाद एवं स्वर्णसिद्धि ( २१८-२२३ )
धातुवाद कला एवं व्यवसाय के रूप में, धातुवाद की शिक्षा, प्रयोगप्रक्रिया, सफलता-असफलता, प्रयोगवादी-नरेन्द्रकला। जात्य-सुवर्णविशद्धीकरण की प्रक्रिया। स्वर्णसिद्धि-समद्रचारियों का व्यवसाय कू० में रुधिर से स्वर्ण वनाने का उल्लेख ।
अध्याय पाँच :: शिक्षा, भाषा और बोलियाँ
२२५-२६९ परिच्छेद १. शिक्षा एवं साहित्य ( २२७-२४६ )
शिक्षा का उद्देश्य, शिक्षा का प्रारम्भ-पाँच व आठ वर्ष की आय में। गुरुकुल एवं विद्यागृह-मठ। शिक्षणीय विषय-व्याकरण एवं दर्शनशास्त्र, ७२ कलाएँ, आयुज्जाण ( संगीत ), वत्थु ( वास्तुकला), दंतकायं ( हाथीदाँत की कला ), बिणिओग (प्रशासन कला), अल्लकम्मं ( सिंचनकार्य ), अक्खाइया ( कथालेखन ), कालायसकम्म ( लुहारी), मालाहत्तणं, उपणिसयं ( उपनिषद् विद्या ), पासोवणि ( अवस्वापिनी विद्या ), मूलकम्मं ( वैद्य क ), आदि विशिष्ट कलाएँ। अश्वविद्या-अश्वों के नाम, १८ जातियाँ, अश्वों के शुभ अशुभ लक्षण । ज्योतिषविद्या, निमित्तशास्त्र, सामुद्रिकविद्या, स्वप्ननिमित्त । अन्य विभिन्न विद्याएँ-महाशबरी, भगवती प्रज्ञप्ति । चाणक्य एवं कामशास्त्र का अध्ययन । छात्रों का स्वरूप एवं दिनचर्याविजयपुरी के मठ के छात्र, भोजनभट्ट एवं असम्बद्ध प्रलापी। विभिन्न
विद्याओं के जानकार । परिच्छेद २. भाषाएँ और बोलियाँ ( २४७-२६१ )
उद्द्योतन द्वारा उल्लिखित प्रमुख भाषाएँ-प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश