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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन था।' सम्भवतः इनमें औषधिदान के अतिरिक्त रोगियों के निवास की भी व्यवस्था रही होगी।
इन परोपकारी संस्थाओं के अतिरिक्त उद्द्योतनसूरि ने तडाग, वापी (६५.८), पाराम (२०३.१०), बालाराम (२३१.३१), दीन-विकल निवास (६५.८) आदि का भी उल्लेख किया है, जिनसे समाज के व्यक्ति लाभान्वित होते थे। इस प्रकार ज्ञात होता है कि तत्कालीन समाज में वाणिज्य-व्यापार की प्रगति के कारण जितनी समृद्धि थी, उतना ही उसका सदुपयोग भी होता था।
१. पयत्तेसु आरोग्य-सालाओ, ६५.९.