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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन परतीर (१०५.२६)-सागरदत्त व्यापार के लिए परतीर में बिकनेवाले पदार्थों का संग्रहकर विदेशयात्रा में निकलता है (१०५.२७) । इससे स्पष्ट है कि 'परतीर' विदेश के लिए व्यापार का पारिभाषिक शब्द था।
पुर (७१.१०, २४०.२०)--उत्तर वैदिक साहित्य में पुर शब्द का उल्लेख नगर के अर्थ में हुआ है।' पिशेल का मत है कि प्राकार एवं परिखा से परिवेष्ठित नगर को 'पुर' कहा गया है। कुव० में पुर और नगर का एक साथ उल्लेख हुआ है (७१.१०), साथ ही विजयानगरी या विजयपुरी दोनों शब्द एक ही नगर के लिए भी प्रयुक्त हुए हैं।
मडम्ब (२४०.२०)-कुव० में मडम्ब का कोई परिचय प्राप्त नहीं होता, केवल नगर आदि के साथ उसका उल्लेख है। आदिपुराण से ज्ञात होता है कि उस बड़े नगर को मडम्ब कहा जाता था, जो पाँच सौ ग्रामों के बीच व्यापार आदि का केन्द्र हो (आदि १६.१७२)। आधुनिक 'मंडी' (= बाजार) से इसकी समता की जा सकती है। . स्थान (२४१.१)-अपरविदेह में ग्राम-स्थानों की संरचना नगरों जैसी थीणयरसरिस विहवाइं गाम-ठाणाई। स्थानीय शब्द का उल्लेख प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। उससे ज्ञात होता है कि इसका प्रयोग जनपद अथवा आधुनिक जिले के लिए होता था। मानसार से ज्ञात होता है कि स्थान में रक्षकों की एक सेना रहती थी (अ० १०)। कालान्तर में स्थान शब्द पुलिस चौकी के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा था। कुव० के उल्लेख से ज्ञात होता है कि स्थानीय>स्थान (ठाणा) का अपभ्रंश आधुनिक 'थाना' है, जहाँ पुलिस चौकी रहती है तथा जिसके अन्तर्गत कई ग्रामों की रक्षा व्यवस्था की जाती है।
उद्योतनसूरि ने उपर्युक्त भौगोलिक शब्दों के अतिरिक्त वनान्तर (२४१.१), वास (९९.१४), विसय (५५.७), वेलावन (७०.१५), सीमान्तवसिय (२४१.१), सीमन्त (२४१.१), विहार (५५.७) तथा आराम (१४५.५) आदि शब्दों का भी उल्लेख किया है, जो प्राचीन भारत में भौगोलिक सीमाओं के विभाजन के लिए प्रयुक्त होते थे।
___ इस प्रकार उद्द्योतनसूरि ने कुव० में उपर्युक्त जो भौगोलिक विवरण प्रस्तुत किया है उससे न केवल प्राचीन भारत के प्रसिद्ध नगरों व ग्रामों का परिचय मिलता है, अपितु यह भी स्पष्ट होता है कि एशिया के विभिन्न देशों से भारत के सांस्कृतिक सम्बन्ध थे । देश की भौगोलिक सीमा पर्याप्त विस्तृत थी।
१. शतपथ ब्राह्मण, ३-४. २. वैदिक इण्डेक्स, जिल्द १, पृ० ५३९. ३. अर्थशास्त्र (शामाशास्त्री), पृ० ४५. ४. शिल्परत्न (१६ वीं सदी), अध्याय, ५.