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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन
दित्य (६९६ ई०) के लेखों में पारसीकद्वीप का भी उल्लेख मिलता है, ' डी०सी० सरकार ने जिसकी पहचान पर्सिया से की है । जब कि डा० बुद्धप्रकाश का मत है कि पर्सिया के अतिरिक्त इसकी पहचान किसी इसी नाम के द्वीप से करना चाहिये । सम्भवतः उत्तरी सुमात्रा में स्थित पासियों के उपनिवेश को पारसीकद्वीप कहा गया है । इसी द्वीप के लोगों को 'पारस' नाम से उल्लिखित किया जाता रहा होगा । 'फारस की खाड़ी' पर इस समय तक अरबों का प्रभुत्व होता जा रहा था । ईरान के एक प्रान्त को भी 'पारस' कहा जाता था, जिसका सम्बन्ध कुव० के इस सन्दर्भ से नहीं होना चाहिये ।
बब्बरकुल (६५.३२ ) - सोपारक के एक बनिये ने कहा- मैं वस्त्र लेकर बरकुल गया एवं वहाँ से गजदंत और मोती लाया ( ६५.३२) । अन्यत्र वब्बर जाति का भी उल्लेख है, (४०.२५, १५३.१२ ) । डा० वी० एस० अग्रवाल ने बब्बरकुल को बारवरीकम माना है, जो सिन्ध के समुद्रीतट से लगा हुआ था (उ०, कुव० पृ० ११८) । किन्तु डा० बुद्धप्रकाश इसे अफ्रिका का उत्तरी-पश्चिम तट मानते हैं, जो लालसागर के सामने है ।" वहाँ से अफ्रिकी मोती एवं गजदन्त खरीद कर व्यापारी भारत लाते रहे होंगे । भारतीय साहित्य में बर्बर के अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं ।
यवनद्वीप ( १०६.२ ) - सागरदत्त जयश्री नगरी से जहाज द्वारा सात करोड़ मुद्राएँ कमाने यवनद्वीप गया था । " वापस लौटते समय रास्ते में जहाज - भग्न होने से वह चन्द्रद्वीप में जा पहुँचता है । चन्द्रद्वीप की स्थिति बंगालदेश में मानी गयी है । अतः प्रतीत होता है कि सागरदत्त जावा (जवणद्दीप) व्यापार करने गया होगा । वसुदेवहिण्डी में चारुदत्त की कथा में चारुदत्त भी यवनद्वीप की यात्रा करता है । " डा० मोतीचन्द्र ने यवनद्वीप का अर्थ जावा किया है । अतः कुव० का 'जवणद्दीप' जावा के लिये प्रयुक्त हो सकता है, जहाँ के लिये भारत के दक्षिणी बन्दरगाहों से यात्रा प्रारम्भ की जाती थी ।
१. रायगढ़ प्लेट इन्सक्रिप्शन आफ विनयादित्य, पंक्ति १५
-- एपिग्राफिया इण्डिका, भाग १०, पृ० १४.
२. द क्लासिकल एज - हिस्ट्री एण्ड कल्चर आफ इंडियन प्यूपल, भाग ३, पू० २४५. ३. 'पारसीकद्वीप' - बुद्धप्रकाश, इण्डिया एण्ड द वर्ल्ड, पृ १०४.
४. मो० - सा०, पृ० २०३.
५.
बु० ट्र े० क० म०, दिसम्बर ७०, पृ० ४१.
६. मार्कण्डेयपुराण, ५७.३८ ; वायुपुराण, ४५.११८ ; पउमचरिउ ८२.६ आदि ।
७. संपत्तं जवणद्दीवे तं जाणवत्तं - कुव० १०६.२.
८. बसुदेवहिण्डी - गुजराती अनुवाद, पृ० १७७. ९. मो०- सा०, पृ० १३१.