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________________ 72 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ देखो ! स्वरूप की आराधना का फल (लड़ते हैं दासी के लिये वरते हैं शिव-रमणी) जम्बूद्वीप के मंगला देश के अलका नगर में एक धरणीजड़ नाम का ब्राह्मण रहता था। उसकी ब्राह्मणी का नाम अग्निला था। उसके दो पुत्र थे। एक का नाम इन्द्रभूति दूसरे का नाम अग्निभूति था। वे दोनों भाई मिथ्याज्ञानी थे। उसी ब्राह्मण के यहाँ एक कपिल नाम का दासी पुत्र था, परन्तु था वह तीक्ष्णबुद्धि पाला। जब धरणीजड़ अपने दोनों पुत्रों को वेद पढ़ाता तब उसे सुनकर कपिल भी सब याद कर लेता था। कपिल के वेद पढ़ने का रहस्य जानकर उस ब्राह्मण ने उसको जबरदस्ती निकाल दिया, परन्तु कपिल बाहर जाकर भी शीघ्र ही वेदवेदान्त का पारगामी हो गया। __उसी जम्बूद्वीप के मलय देश में रत्नसंचयपुर नाम का नगर था। वहाँ उपने पूर्वोपार्जित पुण्यकर्म के उदय से श्रीषेण नाम का राजा (भगवान शान्तिनाथ का जीव) राज्य करता था। वह राजा कांतिवाला था, अत्यन्त रूपवान नीतिमार्ग की प्रवृत्ति कराने वाला था, शूरवीर तथा धीरवीर था, राजाओं के द्वारा पूज्य था। शुत्रओं को जीतने वाला और गुणों का समुद्र था। वह जिनधर्म में अपना मन लगाता था। शास्त्रों का ज्ञाता और सत्यनिष्ठ था। वह सुखसागर में निमग्न हमेशा पात्रदान करता रहता था। गुरुओं में भक्ति-भाव रखता था। सदाचारी, विवेकी, पुण्यवान तथा उत्तम था। वह हार, कुंडल, मुकुटादि आभूषणों से सुशोभित था और अपने रूप से कामदेव को जीतता था, इसप्रकार राज्यलक्ष्मी को वश में करनेवाला श्रीषेण राजा अपने शुभकर्म के उदय से न्यायपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करता था। उस श्रीषेण के पुण्यकर्म के उदय से रूपवती लावण्यवती तथा शुभलक्षणों से सुशोभित सिंहनिन्दिता तथा अनिन्दिता नाम की दो रानियाँ थी। सिंहनिन्दिता के शुभकर्म के उदय से चन्द्रमा के समान अत्यन्त रूपवान
SR No.032268
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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