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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ परम्पराएँ रखना या छोड़ना ? भारत देश में राजस्थान प्रान्त के झीलों की नगरी उदयपुर जिले में पहाड़ी की तलहटी में एक छोटा सा जनकपुरी नाम का गाँव बसा हुआ है। उसी गाँव में जब मेरे दादाजी कक्षा आठ में अध्ययन करते थे, बात उसी समय की है – मेरे दादाजी की कक्षा में लगभग २० छात्र पढ़ते थे। उनमें दो छात्र कर्णसिंह व हिम्मतसिंह अपनी कुछ विशेषताओं से पूरे स्कूल में अपना नाम रोशन किये हुए थे। सभी साथी उनके स्वभाव से चिरपरिचित हो गये थे। कोई भी उन्हें न जानता हो - ऐसा नहीं था। ___ एक दिन भी ऐसा न जाता था कि वे चोरी न करें और सर उन्हें न पीटें। दोनों भाई थे। एक ही कक्षा में एक साथ अध्ययन करते थे। छोटा भाई हिम्मतसिंह बड़े भाई कर्णसिंह की अपेक्षा होशियार था। अत: वे एक कक्षा में साथ हो गये थे। वे प्रतिदिन किसी न किसी छात्र की किसी न किसी वस्तु को उठाकर अपने घर अवश्य ले जाते थे। जब उनकी चोरी की आदत सबको ज्ञात हो गई तब हम सबने बहुत समझाया। पर वे न समझे तब सबने अपने गुरुजी से कहा। गुरुजी ने दोनों को बहुत समझाया व पीटा, परन्तु वे चिकने घड़े हो गये थे सो उन पर कुछ भी असर नहीं पड़ा। एक दिन गुरुजी ने तंग आकर उनको बहुत लताड़ा और पूछा – क्या तुम गरीब हो ? उन्होंने कहा – हम गरीब नहीं है। गुरुजी ने पूछा – फिर तुम ऐसा क्यों करते हो ? उन्होंने कहा – हमारे पिता चोर हैं सो उन्होंने हमें यही उपदेश दिया है कि अपनी परम्परा कभी नहीं तोड़ना गुरुजी ने कहा – कल जब विद्यालय में आओ तब अपने पिता को साथ में लेकर आना, अन्यथा आना ही नहीं।
SR No.032268
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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