SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१८/२० अन्तर्मुहूर्त पहले नरक के परिणाम और अन्तर्मुहूर्त पश्चात् केवलज्ञान प्राप्त करनेवाले १००८ श्री श्वेतवाहन मुनिराज की कथा चम्पा नाम की नगरी में श्वेतवाहन राजा राज्य करते थे। एकबार भगवान महावीर का उपदेश सुनकर उनका हृदय वैराग्य से भर गया। इस कारण उनने पुत्र विमलवाहन को राज्य का भार सौंपकर दिगम्बर दीक्षा धारण कर ली। उनके साथ ही अन्य अनेक राजाओं ने भी संयम धारण कर लिया। सदा दश धर्मों से प्रेम होने के कारण वे धर्मरुचि नाम से प्रसिद्ध हुए। बहुत समय तक मुनियों के साथ रहकर अखण्ड संयम को साधते-साधते जब वे मुनिराज एक वृक्ष के नीचे विराजमान थे। तब उसी समय वहाँ से राजा श्रेणिक भगवान के दर्शन करने जा रहे थे, रास्ते में एक वृक्ष के नीचे श्वेतवाहन मुनि को ध्यानस्थ देखकर राजा श्रेणिक ने उन्हें नमस्कार किया। नमस्कार करते हुए उन्हें उनकी मुखमुद्रा विकृत दिखाई दी। इस कारण राजा श्रेणिक ने गणधर भगवान से उसका कारण पूछा, तब गणधर प्रभु कहते हैं कि हे श्रेणिक, सुन ! आज ये मुनि एक माह के उपवास के बाद भिक्षा के लिये नगर में गये थे। वहाँ तीन मनुष्य मिलकर इनके पास आये। उनमें एक मनुष्य, मनुष्यों के लक्षण को जानने वाला था, उसने इन मुनिराज को देखकर कहा कि किसी कारण ये तो साम्राज्य का त्याग करके मुनि हो गए हैं और राज्य का भार अपने छोटे से बालक पर डाल आये हैं। यह सुनकर तीसरा मनुष्य बोला कि इस कारण इसका तप तो पापयुक्त ही हुआ। इससे क्या लाभ है ? यह बड़ा दुष्ट है। इसी कारण दया छोड़कर लोक व्यवहार से अनभिज्ञ असमर्थ बालक को राज्यभार सौंपकर केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने के अर्थ यहाँ तप करने के लिये आया है। उधर निष्कृष्ट परिणामी मंत्री आदि ने बालक को साँकल से बाँध दिया और राज्य को बाँट कर इच्छानुसार स्वयं उसका उपभोग कर रहे हैं। इसप्रकार तीसरे मनुष्य के वचन सुनकर मुनि स्नेह और मान से आहार
SR No.032267
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy