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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - 17/29 आपकी पूजा करूँगा ।' अहो ! संसारी विषयप्रेमी को किसी पूर्व पुण्य के उदय से मुनिराज का भी समागम हो जाए तो वह मुनिराज को योग्य व्यवहार विनय करने के बाद अपने सांसारिक दुःखों को ही रोएगा और उन्हें अपने सांसारिक दुःख दूर करने के लिए तथा सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिए प्रलोभन भी देगा; परन्तु सांसारिक सुखों से पार आत्मिक सुख के बारे में नहीं सोचेगा । - ऐसा सांसारिक सुखों की पूर्ति हेतु वज्रमुष्टि ने भी मुनिराज की प्रदक्षिणावन्दना की । उसकी भली होनहार थी, जो उसे खोजते हुए मूर्छित अवस्था में मंगी मिल गई। अतः वह उसे मूर्छित अवस्था में उठाकर मुनिराज के चरणों के समीप ले गया। मुनिराज ऋद्धिधारक थे, उनके प्रभाव से मंगी निर्विष हो गई। वज्रमुष्टि अपनी स्त्री को निर्विष जानकर बहुत प्रसन्न हुआ इसके पश्चात् अपनी पत्नी को मुनिराज के समीप बैठाकर सहस्रदल पुष्प लेने के चला गया और मंगी से कह गया कि जब तक मैं नहीं आऊँ तब तक तुम मुनिराज के समीप बैठना । मंग मुनिराज के समीप बैठ गई हैं और उसका पति सहस्रदल पुष्प लेने के लिए सरोवर की तरफ गया। इधर चोरों का सातवाँ भाई सूरसेन यह सब देख रहा था, वह सोचने लगा कि देखो यह वज्रमुष्टि अपनी पत्नी से कितना प्रेम करता है, भले ही इसकी पत्नी इससे इतना प्यार नहीं करती हो । सूरसेन मन में विचारने लगा कि जरा इसकी परीक्षा करके तो देखूँ, क्या यह भी उससे इतना ही प्यार करती है ? - ऐसा विचारकर उसकी परीक्षा करने के लिये वह महारूपवान सूरसेन चोर मीठे वचनों से उसके साथ बातचीत करने लगा । मंगी सूरसेन का रूप देखकर और मीठे बचन सुनकर कामाग्नि से विह्वल होकर कहने लगी कि हे देव ! कृपा करके मुझे अंगीकार करो। तब सूरसेन चोर ने कहा कि तेरा पति महा बलवान योद्धा होने से मैं उससे डरता हूँ। तब वह स्त्री बोली कि हे नाथ! तुम भय मत करो। मैं अपने पति को तलवार से मार दूंगी। तब सूरसेन ने कहा – 'यदि तू अपने पति को मार देगी तो मैं तुझें अंगीकार
SR No.032266
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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