________________
... जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/27. ... एक मोक्ष में दूसरा नरक में
(बलभद्र, वासुदेव की वैराश्य प्रेरक कथा) - वसुदेव भगवान नेमिनाथ के पिता श्री समुद्रविजय राजा के छोटे भाई थे। एक बार उन्होंने अपनी पत्नी देवकी के साथ चारण ऋद्धिधारी अवधिज्ञानी मुनि अतिमुक्त स्वामी को वंदन-नमस्कार करके अपनी पत्नी देवकी के गर्भ से होने वाले पुत्रों के सम्बन्ध में पूछा कि लोग कहते हैं कि तुम्हारे पुत्रों की 'मृत्यु कंस के द्वारा होगी। क्या यह बात सत्य है या मात्र मन की भ्रान्ति ? प्रभो! हमारी शंका का समाधान करने की कृषा करें। ...
तब मुनिराज ने कहा कि हे भव्य ! देवकी के होने वाले पुत्रों की मृत्यु कंस के द्वारा नहीं होगी। इस सम्बन्ध में जो सत्य है, वह मैं कहता हूँ, जिसे
सुनकर तुम्हारी सभी भ्रान्ति दूर होगी। . . . . . . .. - देवकी का सातवाँ पुत्र नौवाँ नारायण होगा और वह तीन.खंण्ड के राज्य का भोक्ता बनेगा। और उससे बड़े छह भाई तद्भव मोक्षगामी होंगे। उनकी मृत्यु कंस के द्वारा नहीं हँगी। इसलिये तुम चिन्ता मत करो। सात पुत्र तो देवकी के होंगे और एक पुत्र रोहिणी के होगा जो कि बलभद्र होगा। मैं इन
सबके पूर्वभव तुम्हें कहता हूँ, तुम उन्हें सुनो। उनके भव तुम्हारे मन को · आनन्दकारी हैं। . राजा सूरसेन के राज्य में मंथुरा नगरी में बारह करोड़ द्रव्य का स्वामी एक भानु नाम का सेठ रहता था। उसकी स्त्री का नाम यमुना था। उसके सुभानु आदि सात पुत्र थे। भानु सेठ को संसार से वैराग्य होने पर वह अभयनन्दि मुनिराज के समीप दीक्षा लेकर मुनि हो गये और सेठानी यमुना जिनदत्ता आर्यिका के समीप आर्यिका हो गईं। ____ भानु सेठ के दीक्षित होने के पश्चात् उनके सुभानु आदि सातों पुत्रों ने जुआ और वैश्यागमन आदि में पिता का समस्त द्रव्य नष्ट कर दिया। द्रव्य नष्ट हो जाने से वे सातों भाई चोरी करने के लिये उज्जैनी में गये। सुभानु का सबसे छोटा भाई सूरसेन था। उसे महाकाल नामक श्मशान में वंश परम्परा की