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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - 17/24 परिणाम नहीं बिगाड़ना ( द्रोपदी के जीव की भवावली) इस भरतक्षेत्र में चम्पापुरी के राजा मेघवाहन की नगरी में सोमदेव ब्राह्मण और उसकी पत्नी सोमीला रहते थे। उनके सोमदत्त, सोमिल और सोमभूति नामक तीन पुत्र थे। उनके मामा अग्निभूति, मामी अग्निला के धनश्री, मित्रश्री एवं नागश्री नाम की तीन पुत्रियाँ थीं। इन तीनों का विवाह क्रमशः सोमदत्त, सोमिल और सोमभूति के साथ हुआ । - - इसप्रकार अग्निभूति ब्राह्मण का आठ सदस्यीय खुशहाल परिवार था। इन आठों में से तीसरे भाई सोमभूति की पत्नी नागश्री धर्म से विमुख थी, शेष सभी जिनधर्मानुरागी, संसार शरीर से उदास और शास्त्रज्ञ थे । एक दिन धर्मरुचि नाम के मुनिराज को पापिन नागश्री ने विष सहित आहार दिया। वे महामुनि समाधिमरण करके सर्वार्थसिद्धि में गये और तीनों भाईयों ने नागश्री का यह निंद्यकार्य जानकर संसार से उदास हो वरण नामक मुनिराज के समीप जिनदीक्षा धारण कर ली और धनश्री व मित्रश्री (दो भाईयों की पत्नियाँ) गुणवती आर्यिका के समीप आर्यिका हो गईं। संसार वास से विरक्त होकर तीनों मुनि और दोनों आर्यिकाएँ रत्नत्रय की शुद्धता के लिये तपश्चरण में उद्यमी हुए। श्री गुरु के मुख से दर्शन - ज्ञान - चारित्र के भेद धारण कर सोमदत्त आदि तीनों मुनि और दोनों आर्यिकायें-ये पाँचों जीव आराधना आराधकर आरण-अच्युत स्वर्ग में बाईस सागर की आयु के धारक देव हुए। तीसरे भाई की पत्नी नागश्री, जिसने मुनिराज को आहार में विष दिया था, मरकर पाँचवें नरक गई । वहाँ सागरों पर्यन्त महादुःख भोगा । वहाँ से निकलकर तिर्यंच हुई तथा दो सागर तक त्रस-स्थावर अनेक योनियों में भ्रमण किया । तत्पश्चात् चम्पापुर के चाण्डाल की पुत्री हुई। वहाँ समाधिगुप्त मुनिराज का समागम होने से मद्य - मांस-मधु का त्याग किया । वहाँ से मरकर चम्पापुरी में ही सुबंधु नामक सेठ की सुकुमारिका नाम की पुत्री हुई; परन्तु पूर्व के पापोदय से शरीर रूपवान होने पर भी महादुर्गन्धयुक्त था, अतः सभी उसे दुर्गन्धा कहते थे । और इसी कारण कोई उससे विवाह नहीं करता था ।
SR No.032266
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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