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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - 1 17/12 को समाधान हुआ कि कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न को पूर्वभव का बैरी हरण करके ले गया है। वह सौलहवे वर्ष में सोलह लाभ प्राप्त करके माता-पिता कों मिलेंगा। रोहिणी, प्रज्ञप्ति आदि महाविद्याओं का धारक होगा, वह देवों द्वारा अपराजित, प्रबल पराक्रमी, तद्भव मोक्षगामी है। प्रद्युम्न पूर्वभव के पुण्य से कष्ट में जाकर भी सुरक्षित है। सीमन्धर भगवान की दिव्यध्वनि में प्रद्युम्न का यह वृतान्त सुनकर नारद हर्षित हुए और तुरन्त आकाश मार्ग से गमन करके मेघकूट नगर गये । कालसंवर विद्याधर राजा ने नारद का बहुत विनय किया। नारद ने पुत्र को देखा । 'सैकड़ों . कुमार जिसकी सेवा करते हैं' - ऐसे उस प्रद्युम्न कुमार को देखकर नारद प्रसन्नता से रोमांचित हो गए; परन्तु अपने मन का भेद किसी को नहीं बताया । राजा-रानी और कुँवर ने प्रणाम किया, नारद उन सभी को आशीष देकर आकाश मार्ग से शीघ्र द्वारिका पहुँचे और वहाँ आकर प्रद्युम्न की जो पूर्वभव और वर्तमान भव की कथा जिनेन्द्रदेव के श्रीमुख से सुनी थी, वह सब बताई । (जिसका सार आगामी कहानी में आप भी पढ़ेंगे।) सभी को यह भी बताया. कि मैं स्वयं मेघकूट नगर में प्रद्युम्न को देखकर आ रहा हूँ । १ . वहाँ से नारद, रुक्मणी के महल में गये और कहा कि हे रुक्मणी ! तेरा पुत्र मेघकूटं नगर में राजा कालसंवर के यहाँ अनेक राजकुमारों के साथ क्रीड़ा करते मैंने देखा है। वह तो साक्षात् देवकुमार ही है, ऐसा रूपवान अन्य नहीं है। तेरा पुत्र सोलहवे वर्ष में सौलह लाभ सहित प्रज्ञप्ति विद्या को लेकर आनन्द पूर्वक यहाँ आयेगा । जिस दिन वह आयेगा उसी दिन तेरे मंदिर के उपवन हुमणी बावड़ी जल से भर जायेगी और उसमें कमल खिलेंगे, और भी अनेक चमत्कार होंगे, उन्हें देखकर तुम अपने पुत्र का आगमन जानना । हे पुत्री ! तू सीमन्धर स्वामी के इन सत्य वचनों को जानकर शोक रहित हो धैर्य और शान्ति रख । - इसप्रकार नारद के मुख से पुत्र की कथा सुनकर, भगवान की वाणी पर श्रद्धा करके रुक्मणी नारद से कहती है कि हे भाई ! ऐसा कार्य तुम्हारे से ही बने, अन्य से नहीं बने। मैं पुत्र के शोक में जलती
SR No.032266
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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