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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/10 उतरा और एक गहन अटवी में एक भारी शिला के नीचे बालक को दबाकर अदृश्य हो गया। __उस समय मेघकूट नामक नगर का अधिपति कालसंवर नाम का विद्याधर अपनी कनकमाला नाम की रानी सहित विमान में बैठकर जा रहा था, बालक के पुण्योदय से वहाँ उसका विमान वहाँ रुक गया। तब उसने विचार किया कि “मेरा विमान यहाँ किस कारण रुका है?" यह जानने के लिए शीघ्र ही वह पृथ्वी पर उतरा, उसने बालक की श्वांस से शिला को हिलते देखा, तब उसने विद्या के बल से शिला को हटाया, तब उसके नीचे दबे उस बलशाली बालक को देखकर वह अत्यन्त प्रसन्न हुआ कि जिसके अंग अखण्डित हैं और प्रभाव साक्षात् कामदेव के समान है। इस कारण उस दयालु विद्याधर ने बालक को लेकर अपनी रानी कनकमाला को देकर कहा कि तेरे पुत्र नहीं है, तो यह ले। तब कनकमाला ने बालक को छाती से लगाया और राजा-रानी दोनों ने पुत्र सहित मेघकूट नगर की ओर प्रस्थान किया। बालक अभी एक दिन का ही था। अतः राजा ने नगर में यह घोषणा करवा दी कि रानी के गूढ गर्भ था और मार्ग में बालक का जन्म हुआ। विद्याधर ने भी खूब नृत्य गान करके बालक का आनन्दोत्सव पूर्वक प्रद्युम्न नाम रखा । प्रद्युम्न बाल-सुलभ क्रीड़ाओं को करता हुआ दोज के चन्द्रमा की भाँति वृद्धिंगत होने लगा। इधर रुक्मणी जागृत हुई तो उसने पुत्र को अपने पास नहीं देखा, तब एक चतुर बृद्ध बाई से कहा कि “खोज करो, पुत्र कहाँ गया है ?" खोजने पर भी जब कहीं पुत्र नहीं मिला तो माता विलाप करने लगी कि “हाय पुत्र ! किसी शत्रु ने तेरा हरण किया है।" क्या मैंने पूर्वभव में किसी के पुत्र का हरण किया था ? जिसका यह फल है। इसप्रकार रुक्मणी के विलाप करने से सभी लोग विलाप करने लगे। ___जब यह समाचार श्रीकृष्ण और बलदेव को ज्ञात हुए, तो वे रुक्मणी के महल में आये। रुक्मणी आदि रनवास के सर्व लोगों का रुदन सुनकर तीन खण्ड के स्वामी नारायण अपने भुजबल और असावधानी कि निन्दा
SR No.032266
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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