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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-16/65 समदर्शी पण्डित टोडरमल पात्रानुक्रमणिका पण्डित टोडरमलजी जयपुर नगर के जैन विद्वान गुमानीरामजी टोडरमलजी के सुपुत्र श्रीमती रम्भादेवी टोडरमलजी की माता दीवान रतनचन्दजी टोडरमलजी के मित्र अजबरायजी, श्रीचन्दजी सौगानी, जयपुर के श्रेष्ठिगण एवं त्रिलोकचन्दजी पाटनी, महारामजी । टोडरमलजी के साथी चंद नागरिक, महावत एवं जनसमूह प्रथमदृश्य (समय- प्रातःकाल का प्रथम प्रहर) स्थान - पण्डित टोडरमलजी का निवास स्थान एक कक्ष में पण्डित टोडरमलजी शास्त्र प्रवचन कर रहे हैं। अन्य श्रोतागण शास्त्रश्रवण कर रहे हैं। बीच-बीच में प्रश्नोत्तर भी होते रहते हैं। नगर के प्रमुख श्रेष्ठिगण अजबरायजी, त्रिलोकचन्दजी पाटनी, महारामजी, श्रीचन्दजी सौगानी, पण्डितजी के पुत्र गुमानीरामजी प्रभृति शास्त्रश्रवण कर रहे हैं। पण्डित टोडरमलजी – (हाथ जोड़कर मंगलाचरण करते हुये।) शुद्धात्मानमनेकांतं, साधुमुत्तम मंगलम् । बंदे संदृष्टि सिध्यर्थं, संदृष्ट्यर्थ प्रकाशकम्॥ बन्धुओ ! आचार्यों ने आत्मा को अपने कर्तव्य पालन हेतु बारम्बार
SR No.032265
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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