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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/15 - लालच बुरी बलाय चम्पापुरी का राजा अभयवाहन था। उसकी रानी का नाम पुण्डरिका था। उसके नेत्र पुण्डरीक कमल जैसे थे। उस नगर में लुब्धक सेठ अपनी पत्नी नागवसु तथा गररुड़दत्त और नागदत्त नामक अपने दो हँसमुख पुत्रों के साथ रहता था। . लुब्धक अत्यन्त धनी होते हुए भी वेहद लोभी एवं संग्रही प्रवृति का था। इसी संग्रही प्रवृति के कारण उसने अपनी सम्पूर्ण धनराशि का व्यय करके सोने से पक्षी, हाथी, ऊँट, घोड़ा, सिंह, हिरन आदि पशुओं की एक-एक जोड़ी बनाई। उनके पंख, सींग, पूँछ, खुर इत्यादि में बहुमूल्य हीरे, माणिक, मोती इत्यादि रत्नों को जड़ाकर उसने उन वस्तुओं का एक दर्शनीय संग्रहालय बनाया। जो कोई भी इस प्रदर्शनी को देखता, वह लुब्धक की प्रशंसा करता। स्वयं लुब्धक भी उस जगमगाती प्रदर्शनी को देखकर अपने को धन्य मानता था। जब वह बैल की जोड़ी बना रहा था, तब वह एक बैल बनाकर उस पर तो सोना मढ़ चुका था, परन्तु सोना कम पड़ जाने के कारण वह दूसरा बैल नहीं बना सका था। उस को इस बात का बहुत दुःख था कि वह बैल की जोड़ी नहीं बना पाया। - इसकी चिन्ता उसको सतत रहा करती थी और वह इस कमी को पूरी करने के लिए अथक परिश्रम व कोशिश करता रहता था। एक बार लगातार सात दिनों तक पानी पड़ने से सभी नदी-नाले भर
SR No.032264
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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