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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/12 प्रस्तुत किये हैं; अतः आप जो भी निर्णय करेंगे उचित ही करेंगे। इसका मुझे पूरा विश्वास है।" ___यह सब सुनकर गुणपाल सेठ अपनी पत्नी से कहता है कि तुम्हारी बुद्धि
और उच्च विचार जानकर मेरे हृदय में अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है। मैंने तो मात्र तुम्हारा भाव जानने के लिये ही यह कहा था। मैं भी विधर्मी को कन्या देने के पक्ष में सर्वथा नहीं हूँ। मेरा विचार कन्या का विवाह साधर्मी के साथ ही करने का है। अतः अब बंधुश्री को बुलाकर उसके विचार भी जान लेना चाहिये; क्योंकि विवाह में कन्या की सलाह लेना भी आवश्यक माना जाता है।
गुणपाल सेठ ने बंधुश्री को बुलाकर प्रेमपूर्वक कहा – “बेटी ! तेरे समान पुण्यवान कौन होगा ? क्योंकि मालव नरेश ने स्वयं तेरे साथ विवाह करने का प्रस्ताव भेजा है और विवाह होने के तुरन्त बाद ही वे तुझे पटरानी के पद से सुशोभित करेंगे। तू समस्त राज्य सुख को भोगेगी। हमारा भी भाग्य जागेगा और समस्त देश हमारा सम्मान करेगा। दरबार में मुझे भी उच्चासन मिलेगा। और जब तेरे पुत्र को राज्य शासन मिलेगा तब हमारी प्रतिष्ठा तो बहुत ही बढ़ जायेगी। बेटी ! हम धन्य हैं कि तेरे समान कन्या हमको प्राप्त हुई। आज हमारे समान सौभाग्यशाली कौन होगा ? ऐसा सुअवसर पुण्यात्माओं को ही प्राप्त होता है।"
पिताश्री के ऐसे उल्टे शब्द सुनकर बंधुश्री खेद पूर्वक कहती है कि"हे तात् ! क्षमा करना, आज आपको यह क्या हो गया है ? आप मुझे सांसारिक वैभव में लुभाना चाहते हैं। आप विधर्मी के साथ मेरा विवाह करके मेरे धर्म को नष्ट करना चाहते हो ? मैं सांसारिक वैभव की लौलुपी नहीं हूँ। धर्म को कौड़ी के मोल में बेचना – यह बुद्धिमानी नहीं है। क्या आप नहीं जानते कि यह दिगम्बर जैन धर्म ही समस्त प्राणियों का हितकारक है। यह धर्म ही त्रिभुवन में उत्तम है, पूज्य और वंदनीय है; समस्त सुख प्रदाता यह दिगम्बर जैनधर्म ही है। इस उत्तम धर्म को धारण करने से ही मोक्षलक्ष्मी प्राप्त होती है। ऐसा जैनधर्म महान पुण्योदय से ही प्राप्त होता है।
पिताजी ! दिगम्बर जैनधर्म को दृढ़ता पूर्वक पालन करनेवालों के पूर्व में