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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२ पूजा की थाली, अष्टद्रव्यों की थाली। प्रभुजी का पूजन रचायेंगे, वीर गुण गायेंगे। छोटा-सा मन्दिर ॥२॥ हाथों में लेके झांझ मजीरे, झांझ मजीरे, भाव भरीजे। प्रभुजी की भक्ति करायेंगे, वीर गुण गायेंगे॥छोटा-सा मन्दिर ॥३॥ - चेलना-पुत्र अभय ! महाराज ने हमको जैनधर्म के लिए जो करना हो, वह करने की छूट दे दी है, उसका हम आज से ही उपयोग करेंगे। ___ अभय-हाँ माता ! हमें ऐसा ही करना चाहिए। नहीं तो एकान्ती गुरु बीच में विघ्न डालेंगे, परन्तु हम जैनधर्म की प्रभावना के लिए क्या उपाय करेंगे।
चेलना-पुत्र! मेरे हृदय में एक भव्य जिनमन्दिर बनवाने का विचार आया है, अभी दीवानजी को बुलाकर उसकी शुरुआत कर दें।
अभय- आपका विचार बहुत अच्छा है। हम जिनमन्दिर में श्री जिनेन्द्र भगवान की प्रतिष्ठा का ऐसा भव्य महोत्सव करें कि जैनधर्म का प्रभाव देखकर सारा नगर आश्चर्य में पड़ जाए।
चेलना- हाँ पुत्र ! ऐसा ही करेंगे। तुम अभी जाकर दीवानजी को बुला लाओ।
अभय- जाता हूँ माताजी। (जाकर दीवानजी सहित आता है)
चेलना- पधारो दीवानजी ! आपको एक मंगल कार्य सौंपने के लिए बुलाया है।
दीवानजी- कहिये महारानीजी ! क्या आज्ञा है ?
चेलना- देखो दीवानजी, मेरी इच्छा एक अत्यन्त भव्य जिनमन्दिर बनवाने की है। आप शीघ्र ही उसकी तैयारी करो तथा उसमें जिनेन्द्र भगवान के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव की भी योजना बनाओ।
दीवानजी- जैसी आपकी आज्ञा, मेरा धन्य भाग्य है, जो ऐसा