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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/७७ हो गया। लोगों ने यह चमत्कार देखा; परन्तु वे समझ नहीं पाये कि महावीर ने किसप्रकार मदोन्मत हाथी को वश कर लिया ? जो लोग विचक्षण थे वे समझ गये कि बालप्रभु ने किसी बल से या शस्त्र से नहीं; किन्तु आन्तरिक शान्ति के बल से ही हाथी को वश कर लिया है और ऐसा करके जगत को बतलाया है कि "जगत के किसी भी अस्त्र-शस्त्र की अपेक्षा आत्मबल-शान्तिबल महान है।" बन्धुओ ! जिसप्रकार शिशु महावीर ने विशाल हाथी को वश कर लिया, उसीप्रकार अल्प चेतनभाव भी बड़े-बड़े उदयभावों को जीत लेता है। हाथी को जीतने के लिये महावीर को क्रोध नहीं करना पड़ा; किन्तु शान्ति के बल से ही उसे जीत लिया, उसीप्रकार विषय-कषायरूप पागल हाथी को जीतने के लिये क्रोध की अथवा रागादि की आवश्यकता नहीं होती; किन्तु वीतरागी शान्ति द्वारा ही मुमुक्षु वीर उसे जीत लेते हैं। हाथी जैसा प्राणी भी क्रोध द्वारा वश में नहीं होता, वह शान्ति द्वारा सहज ही वश में हो जाता है; इससे सिद्ध होता है कि उसे भी क्रोध अच्छा नहीं लगता, शान्ति ही अच्छी लगती है। जगत् के सर्व जीवों को शान्ति प्रिय है; क्योंकि शान्ति उनका स्वभाव है। क्या सचमुच वह हाथी पागल हुआ था ? या फिर उसे प्रभु के दर्शनों की तीव्र उत्कण्ठा जागृत हुई थी ? ...और वीर कुँवर के दर्शनों की धुन में वह आकुलित होकर राजप्रासाद की ओर दौड़ रहा था; उसे दौड़ता देखकर ही लोगों ने उसे पागल मान लिया होगा ! देखो, प्रभु को देखते ही वह हाथी बिल्कुल शान्त हो गया ! प्रभु का प्रभाव सचमुच आश्चर्यजनक है। (कवि श्री नवलशाह रचित महावीर पुराण में इस हाथी की घटना में हाथी को देव की विक्रिया होना लिखा है।) ___ अब यहाँ एक बात लक्ष्य में रखना है कि शिशु महावीर ने विशाल हाथी को जीत लिया इसी से वे कहीं अपने इष्टदेव नहीं है; अपने इष्टदेव तो सर्वज्ञ महावीर' हैं। हाथी को जीतते समय उनमें, मोहरूपी हस्ती को जीतकर जो सम्यक्त्वादि भाव वर्तते थे, वही भाव उनको सर्वज्ञता का साधन हुए हैं, इसलिये मोहविजयी महावीर अपने इष्ट हैं। एक रीति से देखा जाये तो उपरोक्त घटना में हाथी द्वारा हुआ उत्पात वह
SR No.032258
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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