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________________ जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/९१ उसके शील का ऐसा प्रभाव देख कर सर्वत्र उसकी जय-जयकार होने लगी और उसका कलंक दूर हुआ । सागरदत्त ने भी प्रभावित होकर उससे क्षमा माँगी और जिनधर्म अंगीकार करके अपना हित किया । उसके बाद वह शीलवती नीली संसार से विरक्त होकर आर्यिका बनी...... राजगृही में समाधि-मरण किया, वहाँ आज भी एक स्थान 'नीलीबाई की गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है और जगत को शील की महिमा बता रहा है। - इसी प्रकार महासती सीताजी के शीलरत्न के प्रभाव से भी . अग्निकुण्ड कमल का सरोवर बन गया था- यह कथा जगप्रसिद्ध है। 'सेठ सुदर्शन की कहानी: धर्मात्मा सेठ सुदर्शन की शीलव्रत में दृढ़ता भी जगत के लिए एक उदाहरण है । कामदेव जैसे उनके रूप पर मोहित हुई रानी ने उन्हें शील से विचलित करने के लिए उनके साथ नाना प्रकार की चेष्टायें की, उसमें सफल नहीं हुई तो सुदर्शन के ऊपर महान कलंक लगाया, परन्तु प्राणान्त जैसा उपसर्ग आने पर भी शील का मेरु सुदर्शन तो अचल ही रहा । अतीन्द्रिय भावना के अटूट किले में बैठ कर इन्द्रिय विषयों के प्रहारों से आत्मा की रक्षा की वाह, सुदर्शन........धन्य तेरा दर्शन । ___कामान्ध रानी ने क्रोधित होकर सुदर्शन के ऊपर अपना शील लूटने का भंयकर झूठा आरोप लगाया, परन्तु अडिग सुदर्शन को उसका क्या? वे तो वैराग्य भावना में मग्न थे और प्रतिज्ञा की थी कि यह उपसर्ग दूर होगा तो गृहवास छोड़ कर मुनि बन जाऊँगा । वैराग्य में लीन उन महात्मा को दुष्ट रानी के ऊपर क्रोध करने की अथवा अपना स्पष्टीकरण करने की फुर्सत भी कहाँ थी? अत: रानी की बनावटी बात को सत्य मान कर राजा ने तो सुदर्शन को मौत की सजा दी । शील की खातिर प्राणान्त का प्रसंग आये तो भले आये....।
SR No.032257
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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