SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/५७ बड़ी अद्भुत शोभायात्रा निकालने की तैयारी की, परन्तु बुद्धदासी को यह सहन नहीं हुआ । उसने राजा से कह कर रथयात्रा स्थगित करवा दी और बौद्धों की रथयात्रा पहले निकलवाने को कहा । अरे, जिनधर्म की परम महिमा की इसे कैसे खबर हो ? गाय का दूध और आक का दूध- इसका अन्तर मदहोश व्यक्ति कैसे जान सकता है ? जिनेन्द्र भगवान की रथयात्रा में विघ्न होने से उर्मिला रानी को बहुत दुःख हुआ और रथयात्रा नहीं निकलने से उसने अनशन व्रत धारण करके वन में जाकर सोमदत्त तथा वज्रकुमार मुनियों के सान्निध्य में शरण ली । उसने मुनिवरों से प्रार्थना की कि वे जैनधर्म पर आये हुए इस संकट का निवारण करें । रानी की बात सुन कर वज्रकुमार मुनिराज के अन्तर में धर्मप्रभावना का भाव उल्लसित हुआ । इसी समय विद्याधर राजा दिवाकर अपने विद्याधरों सहित वहाँ मुनियों के दर्शन-वन्दन करने आये । वज्रकुमार मुनि ने कहा-“राजन्, आप जैनधर्म के परम भक्त हैं और धर्म के ऊपर मथुरा नगरी में संकट आया है, वह दूर करने में आप समर्थ हैं । धर्मात्माओं को धर्म की प्रभावना का उत्साह होता है, तन से, मन से, धन से, शास्त्र से, ज्ञान से, विद्या से, सर्व प्रकार से वे जिनधर्म की वृद्धि करते हैं और धर्मात्माओं का कष्ट निवारण करते हैं ।" दिवाकर राजा को धर्म का प्रेम तो था ही, मुनिराज के उपदेश से उसे और भी प्रेरणा मिली । मुनिराज को नमस्कार करके तुरन्त ही उर्मिला रानी के साथ सभी विद्याधर मथुरा नगरी आ पहुँचे । उन्होंने बड़े जोरों की तैयारी के साथ बड़ी धूमधाम से जिनेन्द्र भगवान की शोभायात्रा निकाली । . हजारों विद्याधरों के प्रभाव को देखकर राजा और बुद्धदासी भी आश्चर्य चकित हो गये और जिनधर्म से प्रभावित होकर आनन्द पूर्वक उन्होंने जैनधर्म स्वीकार करके अपना कल्याण किया तथा सत्य
SR No.032257
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy