________________
. जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/५१ अहा ! विष्णुकुमार की विक्रियालब्धि बलि आदि की धर्म-प्राप्ति का कारण बन गई । उन जीवों का परिणाम एक क्षण में पलट गया।
“अरे, ऐसे शान्त वीतरागी मुनियों के ऊपर हमने इतना घोर उपसर्ग किया । धिक्कार है हमें"- ऐसे पश्चाताप पूर्वक उन्होंने जैनधर्म धारण किया ।
इस प्रकार विष्णुकुमार ने बलि आदि का उद्धार किया और सात सौ मुनियों की रक्षा की । - चारों ओर जैनधर्म की जय-जयकार गूंज उठी । तत्काल हिंसक यज्ञ बन्द हो गया और मुनिवरों का उपसर्ग दूर हुआ । हजारों श्रावक परम भक्ति से सात सौ मुनिवरों की वैयावृत्य करने लगे, विष्णुकुमार ने स्वयं वहाँ जाकर मुनिवरों का वैयावृत्य किया और मुनिवरों ने भी विष्णुकुमार के वात्सल्य की प्रशंसा की । वात्सल्य का यह दृश्य अद्भुत था ।
बलि आदि मन्त्रियों ने मुनियों के पास जाकर क्षमा माँगी और भक्ति से उनकी सेवा की ।
___ उपसर्ग दूर होने पर मुनिसंघ आहार के लिए हस्तिनापुर नगरी में पहुँचा । हजारों श्रावकों ने अतिशय भक्ति पूर्वक मुनियों को आहारदान दिया, उसके बाद उन श्रावकों ने स्वयं भोजन किया । देखो, श्रावकों का भी कितना धर्म प्रेम ! धन्य हैं वे श्रावक!...... और धन्य हैं वे साधु!!
जिस दिन यह घटना घटी, उस दिन श्रावण सुदी पूर्णिमा का दिन था । विष्णुकुमार द्वारा महान वात्सल्य पूर्वक सात सौ मुनियों की तथा धर्म की रक्षा हुई, अत: वह दिन रक्षा पर्व के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह पर्व रक्षाबन्धन के नाम से आज भी मनाया जाता है ।
. मुनियों पर आया उपसर्ग दूर होने पर विष्णुकुमार ने वामन पण्डित का वेष छोड़कर फिर से मुनि-दीक्षा लेकर मुनिधर्म धारण किया