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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/५०
मोह की हार
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पिता - हठ तजो रे बेटा ! हठ तजो, मत जाओ वनवास, बेटा हठ तजो। पुत्र - मोह तो रे बापू ! मोह तजो, जाने दो वनवास, बापू मोह तजो । पिता - वन में कंटक वन में कंकड़,
पुत्र
पिता - सुख वैभव की रेलमपेल में,
तू ही एक आधार, बेटा हठ तजो । यह संसार दावानल सम है, इनको तृणवत् जान, बापू मोह तजो । पिता- लाड़ लड़ाऊँ प्रेम से तुझको,
खाओ मिष्ट पकवान बेटा हठ तजो । पुत्र- क्या करना है राख के ढेर से,
खाये अनन्ती बार, पिताजी मोह तजो । पिता- ऊँचा बंगला महल मनोहर,
करो मोती श्रृंगार, बेटा हठ तजो । महल मसान ये हीरा मोती, ये पुद्गल के दास, पिताजी मोह तजो । पिता- कठिन जोग तप त्याग है बेटा,
फिर से सोच विचार, बेटा हठ तजो । पुत्र- धन्य सौभाग्य मिला संयम का,
सफल करूँ पर्याय, पिताजी मोह तजो ।
पुत्र
वन में बाघ विकराल, बेटा हठ तजो । बाघ सिंह तो परम मित्र सम, मैं धारूँ आतम ध्यान, पिताजी मोह तजो।
पुत्र
पिता - धन्य है तेरी दृढ़ता बेटा,
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जाओ खुशी से आज हमरो मोह घटो। हमहू चल रहे साथ, हमरो मोह घटो ||