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अकलंक-निकलंक
(नाटक)
मंगल प्रार्थना हे सिद्धप्रभुजी! आपको, करूँ याद अपने आत्म में। मुझ आत्म जीवन ध्येय बनकर, नाथ बसिये हृदय में।। सर्वज्ञ सीमन्धर प्रभु अरु, वीर स्वामी भरत के। शुद्ध द्रव्य-गुण-पर्याय से, प्रभु आप मेरे ध्येय हैं।। आचार्य कुन्दकुन्द आदि को, अरु सर्व मुनि भगवन्त को। वनवासी मुनिवर संत को, करूँ स्मरण वन्दन भक्ति से।। जिनवाणी भगवती मात! अपना, हाथ रख मम शीश पर। करके कृपा हे देवी! मुझ पर, दे मुझे सम्यक्त्व को।। नमता हूँ गुरुवर कहान को, जीवन के मम आधार को। जो सींचते वैराग्य से, भरपूर ज्ञानामृत अहो।। वन्दन करूँ मैं मात तुमको, भक्ति के बहुभाव से। जो नित्य देती प्रेरणा, भरपूर बहु वात्सल्य से।