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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/४० सीता का अपहरण और राम की विरह वेदनाराम गये, उसके बाद रावण सीता को उठा ले गया। उस समय सीता पर सगे भाई के समान प्रेम करने वाले जटायु पक्षी ने रावण को चोंच मारमारकर सीता को छुड़ाने की बहुत कोशिश की, परन्तु रावण जैसे बलवान के सामने बैचारे पक्षी की क्या चले ? अन्त में रावण के प्रहार से वह मूर्छित हो गया और रावण पुष्पक-विमान में सीता को लेकर लंका की ओर भाग गया। सीता अत्यन्त विलाप कर रही थी। राम के विरह में सीता का रुदन देखकर रावण भी उदास हो गया। अरे, ये सीता अपने स्वामी के गुणों में ही आसक्त है, ये स्वप्न में भी दूसरे को चाहने वाली नहीं और मैं इससे जबरदस्ती भी कर नहीं सकता; क्योंकि मैंने मुनिराज के पास प्रतिज्ञा की है कि जो स्त्री मुझे नहीं चाहेगी, उससे मैं जबरदस्ती नहीं करूँगा, परन्तु लंका जाकर मैं इस हठीली स्त्री को भी किसी उपाय से वश में करूँगा - ऐसा विचारता हुआ रावण, सीता को लेकर लंका की तरफ चला गया। जैसे-जैसे लंका उसके पास आ रही थी, मानो वैसे-वैसे उसका मरण भी पास आ रहा था। __यहाँ लक्ष्मण खरदूषण की सेना के सामने लड़कर उसे भगाने की तैयारी में ही है कि राम वहाँ आ पहुँचे। राम को देखते ही लक्ष्मण को धक्का-सा लगा और कहने लगा। "हाय, हाय ! आप ऐसे भयंकर वन में सीता को अकेली छोड़कर यहाँ क्यों आये ?" राम ने कहा – “मैं तेरा सिंहनाद सुनकर आया हूँ।" ___ लक्ष्मण ने कहा- “अरे, मैंने तो कोई सिंहनाद किया ही नहीं मुझे शत्रु का कोई भय ही नहीं, जरूर किसी ने मायाचारी की है; इसलिए आप शीघ्र ही जानकी भाभी के पास वापिस जाओ।" ___ लक्ष्मण की बात सुनते ही राम को सीता का संदेह हुआ.... “अरे, उस अकेली का क्या हुआ होगा।" - इत्यादि विचार करते हुए वे शीघ्र
SR No.032254
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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