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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/४५
हुई है।' - ऐसा विचार कर दोनों सखियाँ वहीं रहने लगीं एवं पुत्र-जन्म का इन्तजार करने लगीं।
इस प्रकार सखी सहित गुफा में निवास कर रही अंजना सती, धर्म के चिन्तवन, वैराग्य-भावनाओं के मनन एवं देव-गुरु-धर्म की भक्ति पूर्वक समय व्यतीत करने लगी। तथा वसंतमाला विद्याबल से खानपानादि की समुचित व्यवस्था करती रही।
उसी गुफा में श्री मुनिसुव्रतनाथ की प्रतिमा स्थापित थी, अतः दोनों सखियाँ भक्ति पूर्वक उत्तम द्रव्यों से जिनदेव की पूजन करतीं, साथ ही वसंतमाला सदा अनेक प्रकार के विनोद से अंजना को प्रसन्न रखने का
प्रयत्न करती। बस ! एकमात्र यही चिन्ता दोनों के अन्तःस्थल में थी कि प्रसूति सुखपूर्वक सम्पन्न हो जाये।
दिन अस्त हुआ, सांझ का लाल रंग ऐसा छा गया मानो, अभी क्रोध से युक्त सिंह आयेगा और थोड़ी ही देर में उपसर्ग होगा-ऐसी सूचना देती हुई अंधियारी रात्रि भी आ पहुँची। भययुक्त पशु-पक्षी शान्त हो गये, कभी-कभी अचानक सियारों की चीखें सुनायी देतीं, मानो आने वाले उपसर्ग के ढोल बज रहे हों।