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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/४९ दूसरे हाथी की आत्मकथा (पाठको ! पहले तुमने “त्रिलोकमण्डन" नाम के हाथी की कहानी पढ़ी, अब यह दूसरे हाथी की कहानी उसके मुख से सुनकर तुम आनंदित होओगे।)
धर्मात्मा हाथी अपनी जीवन कथा कहता है -
भगवान ऋषभदेव के पुत्र महाराज बाहुबली की राजधानी पोदनपुर....जहाँ से असंख्यात राजा मोक्षगामी हुए।..... बाद में एक अरविंद नाम का राजा हुआ ..... मैं (हाथी का जीव) पूर्वभव में इसी अरविंद महाराजा के मंत्री का पुत्र था, मेरा नाम मरुभूति था और कमठ मेरा बड़ा भाई था।
एक बार हमारे भाई कमठ ने क्रोधावेश में आकर पत्थर की बड़ी शिला पटक कर मुझे मार दिया..... सगे भाई ने बिना किसी अपराध के मुझे मार डाला.... रे संसार !
___उस समय मैं अज्ञानी था, इसलिए आर्तध्यान से मर कर तिर्यंच गति में हाथी हुआ, मुझे लोग 'वज्रघोष नाम से बुलाते थे।
मेरा भाई कमठ क्रोध से मरकर भयंकर सर्प हुआ। तथा महाराजा अरविंद दीक्षा लेकर मुनि हुए।
हाथी अपनी आपबीती बताते हुए आगे कहता है - हाथी के इस भव में मुझे कहीं आराम नहीं मिलता था..... मैं बहुत क्रोधी और विषयासक्त था..... सम्मेदशखिर के पास एक वन में रहता था, भविष्य में जहाँ से मैं मोक्ष प्राप्त करूँगा - ऐसे महान सिद्धधाम के समीप रहते हुए भी उस समय मेरी आत्मा सिद्धपंथ को नहीं जानती थी। उस वन का अपने को राजा मानने से वहाँ से निकलनेवाले मनुष्यों एवं अन्य जानवरों को मैं बहुत त्रास (दुःख) देता था।.....