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२८७-२८८ उन भावी महापुरुषों में कैसे गुण होते हैं
१६९ २८९ कैसी भावना वाले गणधर होते हैं
१७० २९० कैसी भावना वाले मुंडकेवली या मूककेवली होते हैं
१७० २९१-२९३ जीवों को विचित्र भावनायें होने में हेतु
१७१ २९४ मोक्ष के हेतु के बारे में अन्य पंडितों के अभिप्राय
१७३ २९५-२९६ इस बारे में विशेष मतभेद और उनका समाधान
१७४ २९७-२९८ अन्य मतवालों का ईश्वर का अनुग्रह किस प्रकार मानने से सत्य है २९९-३०० अन्य कौन-कौन से अनुग्रह होते हैं ३०१-३०२ अन्य मतवादी इस मोक्षमार्ग में हेतुरूप योग को किस प्रकार स्वीकार करते हैं
१७७ ३०३-३०५ परमतवादियों द्वारा कल्पित अयोग्य तत्त्व का खंडन
१७८ ३०६-३०७ कर्म मूर्त है या अमूर्त यह बताते हुए परदर्शनकारों को उत्तर
१८० ३०८ भगवान कालातीत के मत का प्रतिपादन
१८१ ३०९ सद्युक्तिवाले न्याय के वचन ग्रहण करने चाहिये ३१०-३११ कालातीत के मत के साथ विशेषण का भेद
१८२ ३१२-३१३ तीर्थंकर का स्वरूप
१८३ ३१४-३१५ नियतिवाद पदार्थ के सहज स्वभाव के अनुसार है ३१६ छद्मस्थ जीव द्वारा अतींद्रिय वस्तु का निश्चय नहीं हो सकता तो
उसके उपदेश की योग्यता किस प्रकार हो ३१७-३१८ ___ कदाग्रह का त्याग करना चाहिये
१८६ ३१९-३२० दैव और पुरुषकार का स्वरूप ३२१-३२३ दैव और पुरुषकार के संबंध में व्यवहार नय का मत
१८८ ३२४-३२६ दैव और पुरुषकार में अन्योन्याश्रय भाव रहा हुआ है
१९० ___३२७ इस बारे में विशेषता क्या है ३२८-३३१ कर्म और पुरुषार्थ का घात्य-घातक भाव
१९१ ३३२-३३४ नियत भाव वाली योग्यता को काष्ट और प्रतिमा के दृष्टांत से समझाया है १९४
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