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श्लोक विषयानुक्रमणिका
श्लोक संख्या
विषय
पृष्ठ क्रमांक मंगलाचरण पूर्वक योगबिंदु ग्रंथ की रचना करने का प्रयोजन योग मोक्ष का हेतु होने से साध्य का अभेद होने से, वचनभेद अविरोधी है योग मोक्ष का हेतु किस प्रकार से है गोचर-स्वरूप और फल के यथार्थ संबंध रूप योग आत्मा संसारी और मुक्त किस कारण से कहलाती है आत्मा के विकास में देवों का अनुग्रह किस प्रकार मोक्ष का हेतु हो सकता है केवल एक ही आत्मा मानने वाले का मत किस प्रकार भूल भरा है १० जीव का कर्म से संबंध होने में कारण रूप योग्यता अनादि स्वभाव है
योग्यता नहीं मानने से किस प्रकार विरोध होता है १२ गोचर स्वरूप और फल के यथार्थ संबंध रूप योग १३-१४ जीव में कर्मबंध करने की योग्यता रही हुई है
उपचार किस तरह किया जाता है आत्मा का पुरुषार्थ भी योग्यता स्वभाव से किस प्रकार है वेदांत आदि अन्य दर्शन और जैन दर्शन में भाषा का क्या भेद है दर्शनों में भेद होने से शब्दभेद तो होगा ही सकल कारण रूप योग्यता से क्या सिद्ध होता है योग की सिद्धि के बाद, सर्व पदार्थ एकांत नित्य या एकांत अनित्य है, यह मानने में क्या बाधा है
काना हा