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अनुवादक की ओर से....
चरम तीर्थंकर परमात्मा महावीर स्वामी भगवान की २५००वां निर्वाण शताब्दि (ई.स. १९७४) वर्ष चल रहा था । शान्तमूर्ति प.पू. आचार्य श्रीमद् विजयसमुद्रसूरिजी महाराज की आज्ञा से हम पू. मृगावतीश्रीजी म.सा. आदि सभी साधु-साध्वीवृन्द दिल्ली रूपनगर में चातुर्मास हेतु पधारे थे । हम सभी के मन में अपार उत्साह था। आराधना साधना चल रही थी । उस समय पंडितवर्य श्री बेचरदास दोशी, पू. साध्वीश्री मृगावतीजी के पास आए थे। पंडितजी ने हमारे गुरु श्री मृगावतीजी महाराज को पुत्रीवत् वात्सल्यभाव से जैन आगमग्रंथों का अभ्यास करवाया था और उनका वाल्सल्यभाव जीवनभर अक्षुण्ण रहा और बढ़ता ही रहा । उन्होंने याकिनी महत्तरा सुनू आचार्य हरिभद्रसूरि विरचित योगबिन्दु ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद एवं विवेचन हेतु प्रेरणा दी थी । किन्तु महत्तरा साध्वीजी म. शासन के अनेकविध कार्यों में व्यस्त थे फिर भी उन्होंने मुझे योगबिन्दु का हिन्दी अनुवाद एवं विवेचन हेतु आदेश दिया । मैं तो इस विषय में अनभिज्ञ थी और मेरे लिए ऐसे प्रौढ़ ग्रंथ का विवेचन करना कठिन कार्य था । पू. महाराज श्रीजी ने कहा तुम प्रयास करो सब कुछ गुरुकृपा से हो जायेगा। तुम कार्य प्रारंभ करो ! जहाँ कहीं तु रुकेगी मैं तुम्हें मार्गदर्शन देती रहूँगी । यह सुनकर मुझे हिंमत आई । गुरुदेव के आदेश को शिरोधार्य किया । परमात्मा एवं गुरु भगवंतों का स्मरण करते हुए आचार्य हरिभद्रसूरि के इस ग्रंथ पर कार्य करना प्रारंभ किया ।
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पू. गुरुमहाराजजी ने रूपनगर में ही एक एकान्त स्थल पसंद कर दिया और सुबह के सभी कार्य निष्पन्न करके अनुवाद का कार्य करने बैठ जाती थी। योग मेरा विषय नहीं था मैंने योग का अभ्यास भी नहीं किया था किन्तु गुरुकृपा से ऐसी शक्ति मिली कि मैंने कार्य करने का संकल्प भी कर लिया कार्य बनने लगा । प्रथम २५ श्लोकों का अनुवाद एवं विवेचन करके पंडितवर्य श्री बेचरदासजी को भेजा । उन्होंने सारा मेटर पढ़कर अनेक सुझाव दिये इतना ही नहीं साथ ही साथ उन्होंने स्वयं २५ श्लोकों का विस्तृत विवेचन लिखकर भेजा। उस समय पंडितजी की आयु ८५ वर्ष के करीब थी उनका वात्सल्य भाव मुझे कार्य करने में सदा उत्साह देता रहा। मैंने उसी अनुवाद को आधार बना करके आगे का कार्य प्रारंभ किया । चातुर्मास में पू. गुरु महाराजजी ने मुझे अन्य सभी कार्यों से मुक्ति दे दी । पर्युषण की आराधना एवं ओलीजी की आराधना को छोड़कर बाकी का सभी समय मैंने इसी में लगाया।