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शुद्ध अनुष्ठान :- दोष विकार से रहित अनुष्ठान को शुद्ध अनुष्ठान कहा है। यहाँ सभी क्रिया सम्यक् ज्ञान और श्रद्धामूलक होती है । यह अनुष्ठान शुद्ध भूमि में मजबूत नींव की तरह होता है। यही भावी योग प्रासाद का कारण बनता है । साधक की सर्व कार्यों में विवेक पुरस्सर प्रवृत्ति होने के कारण महान लाभ प्राप्त होता है ।
सत्शास्त्र परतंत्रता :- यह योग का दूसरा प्रकार है । यहाँ आचार्य बताते हैं कि अर्थ एवं काम में मनुष्य बिना उपदेश ही कुशल हो जाता है। परंतु धर्म में शास्त्र के बिना प्रवीणता नहीं आती है । अत: शास्त्रों का आदर करना, हित कारक है । इतना ही नहीं मोहरूपी अंधकार से युक्त इस लोक में शास्त्र का प्रकाश ही प्रवृत्ति का हेतु है। अत: साधक शास्त्र के अनुसार ही प्रवृत्ति करता है । स्वच्छंद मति से क्रिया नहीं करता है। शास्त्र का माहात्म्य दर्शाते हुए कहा है कि :
पापामयौषधं शास्त्रं, शास्त्रं पुण्यनिबन्धनम् ।
चक्षुः सर्वत्रगं शास्त्रं, शास्त्रं सर्वार्थसाधनम् ॥२२५॥ शास्त्र पापमय व्याधि के लिए औषध है, शास्त्र पुण्य का हेतु है, शास्त्र सर्वदर्शी चक्षु है, शास्त्र सर्व इच्छित वस्तु को सिद्ध करने का साधन है । अतः शास्त्र में भक्ति रखनी चाहिए । सम्यक् श्रद्धा :
आत्मा, गुरु तथा धर्म में पूर्ण श्रद्धा रखने वाला योगी मोक्ष प्राप्त करता है । इन तीनों में श्रद्धा मोक्ष प्राप्ति में हेतु है। शास्त्र में ऐसी श्रद्धा को सिद्धि की दूती कहा गया है । तत्त्वार्थाधिगमसूत्र में सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् चारित्र को मोक्ष का मार्ग कहा है और इन तीनों को रत्नत्रयी कहा है । इसमें भी सम्यक् दर्शन विशेष महत्त्वपूर्ण है । सम्यक् दर्शन से युक्त ज्ञान एवं चारित्र सम्यक् बनते हैं । सम्यक् दर्शन रहित ज्ञान एवं दर्शन महत्त्वपूर्ण नहीं है।
इस प्रकार आचार्य हरिभद्रसूरि ने इन तीनों को योग का अंग माना है । जो इन तीनों से युक्त साधना करता है उसकी साधना विशेष प्रगति साधक बनती है । योगधर्म के अधिकारी और उसके अनुष्ठान :
___औचित्यारम्भक - उचित प्रवृत्ति करनेवाला, अक्षुद्र-गम्भीर, प्रेक्षावान् - कुशाग्रबुद्धि, शुभाशयी-शुभपरिणामी, अवन्ध्यचेष्टा-सफलप्रवृत्ति - करनेवाला एवं कालज्ञ-समयज्ञ ये योगधर्म के अधिकारी हैं । इन गुणों से युक्त साधक का अनुष्ठान अन्तर्विवेक से समुत्पन्न, शान्त, उदात्त, विप्लवरहित होता है । इस प्रकार की क्रिया से अपूर्वकरण द्वारा ग्रंथी को भेद देता है । अपूर्वकरण
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