________________
कर्ता : श्री पूज्य अमृतविजयजी महाराज14 तेरे नेनोंकी में बलिहारी, मानुं छकी समता मतवारी-ते० चंचलता गति मीनकी हारी, अंजन वार हजार उवारी-ते0...(१) जीती चकोरकी शोभा सारी, तासों भखे अगनीदुख भारी-ते0...(२) लाज्यो पंकज अलिकुल गुनधारी, भए उदास हुए जलचारी-ते०...(३) त्रासित हरन नयन सुख छोरी, तपसी होत चले उजारी-ते....(४) जेती कहुं उनकी उपमारी, अभिनंदन जिन पर सब वारी-ते...(७) एसी सुभगता कामनगारी, दीजे अमृतदेगमें अवतारी-ते०...(६)
५२