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कर्ता : पूज्य श्री पद्मविजयजी महाराज 12 तुम्हे जोज्यो जोज्यो रे, वाणीनो प्रकाश-तुम्हे० ऊठे छे अखंड-ध्वनि, जोजने संभळाय नर तिरिय देव आपणी, सहु भाषा समझी जाय-तुम्हे०(१) द्रव्यादिक देखी करीने, नय निक्षेपे जुत्त भंग तणी रचना घणी, कांई जाणे सहु अदभुत-तुम्हे०(२) पय सुधा ने ईक्षु-वारि, हारी जाये सर्व पाखंडी जन सांभळीने, मूकी दियें गर्व-तुम्हे०(३) गुण पांत्रीश अलंकरी, अभिनंदन जिन वाणी संशय छेदे मन तणा, प्रभु केवलज्ञाने जाणी-तुम्हे० (४) वाणी जे नर सांभळे ते, जाणे द्रव्य ने भाव निश्चय ने व्यवहार जाणे, जाणे निज-पर भाव-तुम्हे० (५) साध्य-साधन भेद जाणे, ज्ञान ने आचार हेय-ज्ञेय उपादेय जाणे, तत्त्वातत्त्व-विचार-तुम्हे ० (६) नरक स्वर्ग अपवर्ग जाणे, थिर व्यव ने उत्पाद राग-द्वेष अनुबंध जाणे, उत्सर्ग ने अपवाद-तुम्हे०(७) निज स्वरूपने ओळखीने, अवलंबे स्वरूप चिदानंद-घन आतम ने, थाये जिन-गुण-भूप-तुम्हे०(८) विनयथी जिन-उत्तमकेरा, अवलंबे पद-पद्म नियमा ते पर-भाव तजीने, पामे शिवपुर-सम-तुम्हे०(९)
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