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कर्ता : श्री पूज्य यशोविजयजी महाराज ( 5 मेरे साहिब तुमही हो । प्रभु पास-जिणंदा । खिजमतगार गरीब हूं मैं तेरा बंदा - तेरे 0 ।। १ ।। मै चकोर करुं चाकरी, जब तुमही चंदा । चक्रवाक परे हुइ रहुं, जब तुमही दिणंदा - मेरे 0 ।।२।। मधुकर परे मैं रणझणुं, जब तुम अरविंदा । भक्ति करुं खगपति परे, जब तुमही गोविंदा - मेरे ।।३।। तुम जब गर्जित धन भये, तब मैं शिखि-नंदा । तुम सायर जब मैं तदा, सुर-सरिता अ-मंदा-मेरे०।४।। दूर करो दादा पासजी ! भव-दुःखका फंदा । वाचक जश कहे दासकू, दीओ परमानंदा-मेरे ।।७।।
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