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कर्ता: श्री पूज्य यशोविजयजी महाराज । तोरणथी रथ फेरी गया रे हां, पशुआ शिर देई दोष-मेरे-वालिमा नव भव नेह निवारियो रे हां श्यो जोई आव्या जोष ? -मेरे-मेरे०(१) चंद्र कलंकी जेहथी रे हां, राम ने सीता-वियोग,-मेरे० तंह कु-रंगने वयणले रे हां, पतिआवे कुण लोक ? -मेरे-मेरे०(२) उतारी हुं चित्तथी रे हां, मुगति धुतारी हेत,-मेरे० सिद्ध अनंते भोगवी रे हां, तेहश्युं कवण संकेत ? -मेरे-मेरे० (३) प्रीत करंता सोहली रे हां, निरवहतां जंजाल,-मेरे० जेहवो व्याळ खेलाववो रे हां, जेहवी अगननी झाळ-मेरे-मेरे०(४) जो विवाह अवसर दिओ रे हां, हाथ उपर नवि हाथ,-मेरे० दीक्षा अवसर दीजीये रे हां, शिर उपर जगनाथ ! - मेरे0 (9) इम विलवती राजुल गई रे हां, नेम कने व्रत लीध, मेरे वाचक जश कहे प्रणमीयें रे हां, ए दंपति दोई सिद्ध-मेरे०(६)
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