________________
-जीवनोमनभव०(१)
-जीवनोमनभव०(२)
-जीवनोमनभव०(३)
कर्ता : श्री पूज्य लक्ष्मीविमलजी महाराज जीवनो जीवन माहरो, मननो मोहन मारो; भवनो रोधन माहरो साहिबो, प्रभु ! माहरा! तीन भुवन-शणगार हो; तुम दरसण लह्या विना, प्रभु ! माहरा | भमिओ बहु संसार हो चर्तुदश रजु पूरो, प्रभु ! आतम फरसी जाण हो० अनादि निगोद मांहि वस्यो, प्रभु० काळ अनंत प्रमाण हो गोला असंख्याते भर्यो, प्रभु ! पूरण लोकाकाश हो; गोळा-असंख्य-निगोदथी, प्रभु ! तिहां जीव अनंता वास हो सासोसासनुं मूकवू, प्रभु । जनम-मरण समकाळ हो; आप-स्वरूप जाण्युं नहीं, प्रभु ! अनुभवी जडता-जाळ हो बायर-निगोदमांहि सह्यो, प्रभु ! छेदन-भेदन ताप हो; पुंढवी आउ तेउमा, प्रभु० वायु वणस्पति पेहो बि-ति-चउरिंदिमां रह्यो, प्रभु० संख्याता महाकाळ हो, तिर्यंचना भव में किया, प्रभु० दीप पंचावन चाळ हो साते नरके हं भम्यो, प्रभु० दीर्घकाळ असराळ हो, दुर्भग-देवनी जातिमां, दुःख सयुं विशाळ हो मुनिसुव्रत-कृपाथकी, प्रभु० भाग्यो सब विषवाद हो, कीर्ति विमल-गुरुनी, प्रभु शिव-लच्छी करूं साद, हो
-जीवनोमनभव० (४)
-जीवनोमनभव०(५)
-जीवनोमनभव०(६)
-जीवनोमनभव०(७)
-जीवनोमनभव०(८)
२30