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'श्री कीर्तिविमलजी महाराज &
कर्ता : पूज्य
मल्लिनाथ मुज चित्त वसे, जिम कुसुममां वास-ललना उत्तम नर जिहां किण वसे, तिहां थाये सही उल्लास
-ललना-मल्लि० (१) सूर्य विना जेम दिन नहिं, पुण्य विना नहि शर्म-ललना पुत्र विना संतति नहि, मन-शुद्धि विना नहि धर्म
-ललना-मल्लि०(२)
शुद्ध विद्या गुरुविण नहि, धन विना नहि मान-ललना दान विना जिम यश नहि, कंठ विना नहि गान -ललना- - मल्लि० (३) साहस विना सिद्धि नहि, भोजन विना नहि देह-ललना वृष्टि विना सुभिक्ष नहि, राग विना नहि द्वेष
-ललना-मल्लि० (४)
तेम प्रभुने सेव्या विना मोक्ष न पामे कोय-ललना में तो तुम आणा वही, जिम ऋद्धि-कीर्ति होय
- मल्लि० (५)
-ललना
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