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कर्ता : श्री पूज्य भाणविजयजी महाराज 2 श्री कुंथुजिनराजजी विनवी कहुं मननी वात, महेर धरी सेवक भागी, सुणो विनति तो आवे घात-श्री०(१) अवसर पामी कहो प्रभु ! कुणअहिले ते गमी जाय, तिम अवसर पामी तुम प्रते, हं विनवू छु जिनराय-श्री०(२) सज्जन एकांते मळ्या, कहेवाए मननी वात; पण मुज मननी जे वारता, ते तो जाणो छो सहु अवदात-श्री०(३) पण एक-वचन जे कहं, ते तो मानो थई सुप्रन्न; अतुलो अमृत पाइए, जिम हरखित होय मुज मन्न-श्री०(४) भव-भव तुम पद-सेवना, हवे देजो श्री जिनराय; प्रेम विबुधना भाणने, तुम दरिसणथी सुख थाय-श्री० (५)
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