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कर्ता : पूज्य श्री किर्तिविजयजी महाराज 20 शान्ति तेरे लोचन है अणियाळा कमल ज्युं सुंदर, मीन ज्युं चंचल, मधुकरथी अतिकाळे....१ जाकी मनोहरता जित वनमें, फिरते हरिण बिचारे....२ चतुर चकोर पराभव निरखत, बहुं रे चुगत अंगारे रे....३ उपशम रसके अजब कटोरे, मानु विरंची संभारे....४ किर्तिविजय वाचक विनयी, प्रभु मुजकों अति प्यारे...."
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