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कर्ता : श्री पूज्य ज्ञानविमलसूरी महाराज 6 श्री चंद्रप्रभ-साहिबा रे, चंद्र किरण सम देह-मनरा मान्या; नित्य-उदय नि-कलंक तुंरे, अनुपम अचरिज एह-मनरा० आवो ! आवो । हो वखाण ! तुं तो त्रिभुवन-भासक भाण-मनरा०(१) तुज सम गणना-कारणे रे, जे रेखा प्रथम सुचंग-मनरा० ते आकाशे निपनी रे, त्रिभुवन-पावनगंग-मनरा०(२) अवर न को तुम सारिखो रे, छोड्यो खटिका-खंड-मनरा० ते कैलास-रुपा समो रे; महियलमांहे अखंड-मनरा०(३) ताहरा गुण तुममा रह्या रे, एह मिले नहि पर पास-मनरा० तेणे हेते करी जाणीयें रे; त्रिभुवन ताहरो दास-मनरा०(४) दोषाकर तुम पद रह्यो रे, सेवासारे खास-मनरा० दोषरहित तनु ताहरु रे ज्ञानविमल-सु-प्रकाश-मनरा०(५)
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