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[६८] रे ॥मोरा० ६॥ श्री जिन नामी समकित पामी, लेखे त्यारे गणाशु । ज्ञान विमल सूरी कहे धन धन ते दिन, परमानंद पद पाशुरे ॥मोरा० ७॥
३३ महावीरस्वामी का स्तवन सकल सुरासुर सेवित साहिब, अनिश वीर जिणंद । सुरकान्ता शची नाटक पेखत, पण नहीं हर्ष आणंद ॥ हो जिनवर तु मुज प्राण आधार ॥ जग जनने हितकार, हो जीनवर तु मुज प्राण आधार ॥१॥ दानवीर तपवीर जिनेश्वर, कर्म रिपुहत वीर । तेणे कारण अभिधान तमारू, युद्धवीर गंभीर हो०॥२॥ तुसिद्धारथ सुत सिद्धारथ, नहीं सुत मात्र अबीह । हरि लंछन गत लंछन साहिब, चउविह धर्मनीरीह हो० ३॥ संघ चतुर्विध स्थापना कीधी, चउगइ पंथ विहाय । पंचम नाणे पंचम गतिए, वीर जिणंद सधाय हो०॥४॥ सोल पहोर प्रभु देशना वरसी, फरसी विभु गुण ठाण । पंधन छेदन गति परिणाम, चरम समय निर्वाण हो० ॥५॥ स्वाति नक्षत्रे शिवपद पाम्या, दीवाली दिन तेह । वीर वीर गौतम वीतरागी, त्रुट्यो बंधन स्नेह ॥हो०॥६॥ खिमा विजय शुभ सुख लहीये, वीर कहे वीर ध्यान । करता सुर सुख सौख्य महोदय, लीला लहेर वितान हो॥७॥