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[३४] लीम्बादिक चंदन थाय, लही मलयाचलनो वायरे, जिनजी० पामा पारस संयोग; लोह कंचन जाति अभोग रे ॥जिनजी॥ ॥४॥ चेतन पारिणामिक भव्य, तुम्ह दरशन फरशन भव्य रे जिनजी० ज्ञान गोरस चरण जमावे, जिन विजय परम पद पावे |जिनजी॥५॥
२९ आखातीज का स्तवन श्री रिखब वरसोपवासी, पुरवनी प्रीत प्रकाशी । श्रेयास बोले शाबाशी, बाबाजी विनती अब धारोरे, मारे मंदिरीये पाऊ धारो ॥बाबाजी० १॥ शेलड़ी रस सुझतो व्होरो, नाथजी न करवो न्होरो । दरिशन प्रति आपो दोरोवाबाजी ॥२॥ प्रभु ए तव मांडी पसली,आहार लेवानी गति असली । प्रगटि नव दुर्गति वसली ॥बाबाजी॥३॥ अजुआली त्रीज वैशाखी, पंच दिव्य थता सुर साखी । एतो दान तणी गति दाखी ॥बाबाजी० ४॥ युगादि पर्व जाणो, आखा त्रीज नामे वखाणो । सहु कोई करे गलमाणो बाबाजी०॥५॥ सहस वरसे केवल पायो, एक लाख पुख अर आयो । पछी परम महोदय पायो ।बाबाजी० ६॥ अम उदय वंदे उवज्झाया, पुजोजी रिखबना पाया। जेणे आदि धर्म उपाया बाबाजी० ७॥