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[६२] २६ वासुपूज्यजी का स्तवन
__ (राग-ए तीरथ तारू-ए देशी) वासुपूज्य जिन त्रिभुवन स्वामी, मेतो पुन्ये सेवा पामी रे। शिवपुरना वासी मुज मन मंदिर अंतरजामी, श्रावी वसो शिवगामी रे, ॥शि०॥१॥ अहो निश साहिब प्राणा पालु, कर्म रिपु मद भालु रे ।।शि०॥ विषय कषाय कंटक सवि टालु, शुचिता घर अजुभालु रे ॥शि०॥२॥ उपशम रस छटकाव करावं, मैत्री पटुकुल बिछाऊ रे, शि० भगति निके तकीये बनाऊ, समकित मोती बधाऊ रे शि०॥३॥ आगम तत्व चंदरवा बांधु, बुद्धि दोरी तिहां साधु रे शि० बोधि बीज प्रभु थी मुज लाध्यु, चरण करण गुण वाधुरे ॥शि०॥४॥ नय रचना मणि माणेक ओपे, भक्ति शक्ति नवि गोपे रे शि० अनुभव दीपक ज्योत आरोपे, पाप तिमिर सवितोपेरे ॥शिव॥५॥ मुज मन मंदिर साहिब आया, सेवक बहु सुख पाया रे शि. भगते रीझे त्रिभुवन राया, न्याय सागर गुण गाया रे ॥शिव०॥६॥
२७ शांतिनाथजी का स्तवन (राग-विमल जिन दीठाँ ओयण आज-ए देशी)
अाज थकी में पामीयो रे, चिंतामणि सम ईश । सफल मनोरथ पूरवारे, उदयो विशवा वीश । भविकजन सेवो शांति
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